साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई, दैनिक लेखन क्रमांक :- 2
साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई, दैनिक लेखन क्रमांक :- 2
#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#विषय प्रवर्तन
#विषय - बेटियां
विधा - स्वैच्छिक
दिनांक व दिन : 27-10-20 , मंगलवार
विषय प्रदाता :- आ. कलावती कर्वा जी
विषय प्रवर्तन :- आ. कुमार रोहित रोज़ जी
मित्रो नमस्कार,
आप सभी का स्वागत वंदन अभिनंदन। सर्वप्रथम विषय प्रदाता आ. कलावती कर्वा जी को नमन इतना खूबसूरत विषय देने के लिए। ऐसा विषय जिस पर हर कलमकार सृजन करना चाहता है। और विधा भी स्वैच्छिक जो सबको आजादी के साथ लेखन को बाध्य करती है। बेटियों पर बहुत साहित्य लिखा जा चुका और आगे भी लिखा जाता रहेगा। अभी नवरात्रि सम्पन्न हुए जिसमें हम सभी ने यथासंभव पूजन अर्चन वंदन किया और मां दुर्गा के नौ रूपों का वर्णन किया। सच भी ही बेटियों में शक्तियां अपार होती हैं इसे कोई नकार नहीं सकता। आज हर क्षेत्र में बेटियां आगे बढ रहीं है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री इसका एक उदाहरण है।
यह तो हुई हमारे आदर्श की बात किंतु यथार्थ कुछ अलग है। बेटियां हर घर की लक्ष्मी होती है जिनके चरण छूकर हम आशीर्वाद लेते हैं व अपनी आस्था प्रकट करते हैं। लेकिन जब बहन बेटियों किसी दूसरे की हों तो असामाजिक तत्वों का नजरिया बदलते देर नहीं लगती। वहां आस्था श्रद्धा नैतिकता सब धूमिल हो जाती है। आये दिन अखबार इसके गवाह हैं।
खैर आज आपको कुछ ऐसा सृजन करना है जो समाज में बेटियों को वही दर्जा दिला सके जो हम अपने घर में अपनी बेटियों को देते हैं। क्यूंकि समाज को रोशनी केवल साहित्यकार ही दिखा सकता है। बेटियां की शक्तियां सामर्थ्य स्वतंत्रता सम्मान अनगिनत बिंदुओं को शामिल करके पटल पर धमाल कीजिए। ताकि न केवल साहित्य संगम संस्थान बल्कि पूरा हिंदुस्तान आपकी कलम की ताकत से रूबरू हो जाये।
(#का प्रयोग अवश्य करें ।अपनी रचनी इसी कमेंट बॉक्स में प्रेषित करें)
आपका अपना
✍️ कुमार रोहित रोज़
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#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#दिनांक -27/10/20
#विषय -बेटी
#विधा -दोहा
#दिवस -मंगलवार
#विषय प्रदाता - कलावती कर्वा जी
#विषय प्रवर्तन रोहित रोज जी
नाम मनोज कुमार पुरोहित
स्थान अलीपुरद्वार, पश्चिम बंगाल
#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
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बेटी तेरे धैर्य का, कितना करूँ बखान।
शिक्षा से वंचित रही, फिर भी बनी महान।।
जब तेरे ही सामने, पढ़ने जाते भ्रात।
चौका बर्तन तू करे, समझ न आई बात।।
मात पिता के लाडले, भले राह हो भ्रष्ट।
केवल तेरे भाग्य में, भारी भरकम कष्ट।।
शिकवा गिला किया नहीं, छाँव मिले या धूप।
तभी कहे जग नार को, देवी का है रूप।।
सुता पढ़ाओ बात को, कहती है सरकार।
फर्ज हमारा भी बने, बात करें साकार।।
बेटी जिसके सदन की, पढ़ी-लिखी विद्वान।
चर्चे होते जगत में, बनता वही महान।।
आज कली है बाग में, कल होगी वह फूल।
नन्ही कली को मसल कर, करें भला क्यों भूल।।
शपथ आज लें हम सभी, दें तनया को प्यार।
पढ़-लिख कर काबिल बने, होगा तब उद्धार।।
✍️ मनोज कुमार पुरोहित
अलीपुरद्वार, पश्चिम बंगाल
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#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
मंच को नमन
#विषय:बेटियाँ
#दिनांक :27/10/2020
#दिन :मंगलवार
#विधा:कविता
*नदी का रूप हो बेटी*
मेरी कोख से
तूने जन्म लिया बेटी!
समाज व घर ने तुझे मारने
का बड़ा जतन किया बेटी!!
बड़ी मुश्किल से
तुझे बचा पाई बेटी!
प्रभु से कि मैंने
लख-लख दुहाई बेटी!!
बड़े लाड प्यार से,
मैंने पाला तुझको बेटी!
बड़ी हुई तो बाबुल
का आंगन छोड़ चली बेटी!!
अनेक कष्टों को सहाकर
निरंतर आगे बढ़ना बेटी!
मां बाप का शीश,
कभी ना झुकने देना बेटी!!
तुम नदी का,
रूप हो बेटी !
बाधाओं को पार कर
निरंतर आगे बढ़ते रहना बेटी!!
✍️ शिवशंकर लोध राजपूत
(दिल्ली)
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#नमन मंच साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#दिनांक 27/10/2020
#दिन-मंगलवार
#विषय- बेटियाँ
#विधा-कविता
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जीवन की अभिलाषा है,
दीपक जैसा जलने दो।
मत मारो यूँ कोख में मुझको,
अपने तन में पलने दो।।
सृष्टि के निर्माणक में,
मेरा भी कई योगदान है।
किसी की बेटी, किसी की बहना,
किसी की बहू सौगात हैं।।
गर बेटी ही ना रहे तो,
वंश कहाँ से आएगा?
बहू बन किलकारी आँगन में,
भला कौन सुनायेगा?
विश्व पटल पर बेटी ने,
रच डाला कई इतिहास है।
एक दिन पापा मैं भी रचूंगी,
मेरा भी विश्वास है।।
कोई ऐसा क्षेत्र नहीं,
जिसमें बेटी ना प्रतिभाग किया!
लोहा मनवाया बेटों का,
बछेन्द्री पाल सा नाम किया।।
राजनीति में बेटियों की
तूती जमकर बजती है।
पी. एम. - सी. एम. बन करके,
राज वतन पर करती हैं।।
रिश्तों की धुरी बेटी है,
अब बेटी को बचाना होगा।
लुंज-पुंज संकीर्ण मानसिकता -
वालों को समझाना होगा।।
सत्य कसौटी के बल पर,
अभिमान बोती हैं बेटियाँ।
हौसलों से लड़ जाती,
जी! ऐसी होती हैं बेटियाँ।।
✍️ सुरेश सौरभ ग़ाज़ीपुरी
रामपुर फुफुआव, जमानिया,
ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश।
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#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#विषय प्रवर्तन
#विषय - बेटियां
विषय-बेटियां
27 अक्टूबर 2020
विधा-कविता
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जीवनभर बेटी कमाती है
बेटियां घर को सजाती है
दुनिया बहुत रोती हैं जब
बेटी घर पैदा हो जाती है।
मां-बाप की सेवा करती
बस जमाने से थोड़ा डरती,
जब ससुराल जाती है तो
सास ससुर के कष्ट हरती।
पीहर में मायके की चिंता
मायके में पीहर भी सताता,
दो घरों का सजाती बेेेेेेेेेेेेेेेेेेेटियां
दाता उसे देखके मुस्कुराता।
जब ढहाती कहर उस पर
जाती है जब कभी ससुराल,
दान दहेज ढो ढोकर बेचारी
जिंदगी में होती वो लाचार।
नाम कमाती जगत में बेटियां
सीता,सवित्री, इंदिरा,कल्पना,
हे जगत पिता उन्हें दे जीवन
उनका भी होता कोई सपना।।
******************
✍️ होशियार सिंह यादव
मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर 01
कनीना-123027 जिला महेंद्रगढ़ हरियाणा
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नमन मंच
#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#विषय प्रवर्तन
#दिनांक-27.10.2020
#दिन-मंगलवार
#विषय-बेटियाँ
#विधा-अतुकांत कविता
^^^^^ बेटियाँ ^^^^^
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बेटियाँ
जीवन का
आधार/विचार/व्यवहार
खुशियों का संसार हैं।
बेटियाँ/पराई हैं
सुन सुनकर मुरझाई हैं
फिर....भी
घर/परिवार/समाज को
हर्षायी हैं।
बेटियां
रिश्तों की पहचान को
आयाम देती हैं।
बेटियाँ पीड़ा सहकर भी
मुसकराई हैं।
बेटियाँ
अपने होने के अहसास को
अनवरत दर्शायी हैं।
मूकवाणी से अपनी भावनाएं
ग़म हो या हो ख़ुशी वयक्त करती फिर मुसकराई हैं।
बेटियाँ
उम्मीदों का बोझ लिए
सबकी खुशियों के लिये
अनवरत खिलखलाई हैं।
✍️ ■ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
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नमन मंच
#साहित्य संगम संस्थान, पश्चिम बंगाल इकाई
#विषय : बेटियाँ
विधा : कविता
ख्वाबों की बिंदी,उमंगों का गजरा,
सपनों का काजल,सजाए चली मैं।
हो राहें कठिन,लक्ष्य दुर्गम भी तो क्या,
चुनौती की लाली,लगाए चली मैं।
हँसे लोग बेशक,कहें चाहे कुछ भी,
बढ़ती चली मैं,लिए लक्ष्य मन में।
हूँ गुड़िया तुम्हारी,मेरे मम्मी-डैडी,
ना हारी, ना हारूँगी,जीवन सफर में।
'गरीबी' ने जीना,मुझे है सिखाया,
'मजबूरी' इरादों को,पुख्ता किया है।
ना भटकूँ कभी भी,हों मायूस पथ से,
'जरूरत' ने मेहनत को,अपना लिया है।
बदनसीबी की बारिश में,भीगी हूँ फिर भी,
चलती चली मैं,मगन अपनी धुन में।
हूँ गुड़िया तुम्हारी,मेरे मम्मी-डैडी,
ना हारी, ना हारूँगी,जीवन सफर में।
घिरी मैली नजरों की,काली घटा हो,
या आँधी जमाने की,दकियानूसी की।
अवरोधक बनें बेशक,संकीर्ण विचारें,
ना परवाह है,लोगों के कानाफुसी की।
छटेंगें कभी तो,कुरीति के बादल,
बढ़ती चली मैं,लिए आस मन में।
हूँ गुड़िया तुम्हारी,मेरे मम्मी-डैडी,
ना हारी, ना हारूँगी,जीवन सफर में ।।
चकाचौंध दुनिया की,मोहक अदाएँ,
कर सकें मुझको विचलित,ये संभव कहाँ है ?
हों बाहें फैलाए,बुराई की लपटें,
मैं मंजिल से भटकूँ,ये मुमकिन कहाँ है ?
एक आशा का दीपक,जलाए निरन्तर,
गुनगुनाती चली मैं,'नवीन' गीत मन में।
हूँ गुड़िया तुम्हारी,मेरे मम्मी-डैडी,
ना हारी, ना हारूँगी,जीवन सफर में।
✍️ कुमार नवीन "गौरव"
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**बेटी**
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बेटियाँ जान हैं, बेटियाँ मान हैं-2
बेटियों से हमारी ये पहचान है।
घर में बेटी जो है,फिर तो रौशन है घर,
बेटियों से है होता, सुख से बसर।
बेटियाँ ख्वाब हैं, दिल के अरमान हैं,
बेटियों से हमारी ये पहचान है।
हर कदम साथ दे,सबसे आगे रहे,
भाग्य उनसे हमारे ये जागे रहे ।
सच कहूं बेटियाँ, सबकी मुस्कान हैं,
बेटियों से हमारी ये पहचान है।
जग का है वो सृजक,है खुशी से चहक,
रूप कितने धरे,फूलों की हैं महक ।
बेटियाँ जो न हो,फिर तो क्या शान है,
बेटियों से हमारी ये पहचान है।
✍️ ---प्रीतम कुमार झा
महुआ, वैशाली, बिहार
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💐🙏 साहित्य संगम संस्थान , पश्चिम बंगाल ईकाई🙏💐
दिनांकः २७.१०.२०२०
दिवसः मंगलवार
विधाः दोहा
विषयः बेटियाँ
शीर्षकः👰 बेटी है शृङ्गार जग🤷🏻
जीवन की पहली किरण , पड़ी मनुज इह लोक।
बेटी बहना माँ कहो , पत्नी बन हर शोक।।१।।
प्रथम सृष्टि की अरुणिमा , करती जग आलोक।
निर्भय नित सबला करो , बिन बाधा या रोक।।२।।
बढ़ा मनोबल बेटियाँ , करो साहसी धीर।
पढ़ा लिखा समरथ करो , निर्माणक तकदीर।।३।।
ममता समता प्रीति की , तनया नित आगार।
भरी सदा करुणा दया , खुशियाँ दे संसार।।४।।
गेह रोशनी बेटियाँ , दीपशिखा सम्मान।
परहित रत मेधाविनी , परकीया बन शान।।५।।
सरला सहजा मिहनती , चढ़ तनया सोपान।
रचे कीर्ति संसार को , पाती हर अरमान।।६।।
शक्तिशालिनी बेटियाँ , भरो मनसि उत्साह।
रक्षण नित बेटी करो , पूर्ण करो हर चाह।।७।।
सींचो स्नेहिल बेटियाँ , बिना किसी मनभेद।
जीवन हो हर्षित सुलभ , करो नहीं उच्छेद।।८।।
मानक कुल की बेटियाँ , विधलेखी उपहार।
जननी भगिनी बेटियाँ , महाशक्ति अवतार।।९।।
बेटी है शृङ्गार जग , रखो लाज सम्मान।
साधन बन उत्थान का , नार्यशक्ति वरदान।।१०।।
धीर वीर योद्धा वतन , शिक्षित ज्ञान विज्ञान।
कुशला नित नेत्री वतन , अभिनेत्री कृति गान।।११।।
लालटेन प्रतिबिम्ब। नित , दर्शाती अरमान।
चढ़े ऊँचाई प्रगति पथ , बेटी कुल अभिमान।।१२।।
संकल्पित यायावरित , सहने को संघर्ष।
हर बाधा को पार कर , चढ़े सुता उत्कर्ष।।१३।।
खिले निकुंज कीर्ति प्रभा ,बने चारु निशि सोम।
लघु जीवन अनमोल धन,सुता विहग यश व्योम।।१४।।
✍️ कविः डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नई दिल्ली
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# साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई ।
# विषय .प्रवर्तन ।
# विषय .बेटियाँ ।
# दिनांक .27 .10 .2020 .
# वार .मंगलवार ।
# विधा .कविता ।
बेटी तो धर आंगन ,की शोभा है ।
बेटी तो माँ बाप ,के आँखों की तारा है ।।
बेटी तो दो कुल ,की लाज है ।
बेटी बिना जीवन ,श्मशान समान है ।।
बेटी भाईयों की रक्षाबंधन ,की आस है ।
बेटी की रक्षा भाई ,मरतेदम तक करता है ।।
बेटी पराये धर जाकर ,भी माँ बाप को नही भुलती है ।
बेटी एक बुलावे पर ,सुख दुःख में दौडी चली आती है ।।
कुछ लोग दहेज के लालच में ,बेटी को जला देते है ।
कुछ दहेज के लिए बेटी ,को गर्भ में ही मार देते है ।।
बेटी नही तो माँ दादी नानी ,बहु बहना कौन बनेगा ।
बेटी नही तो सृष्टि का ,सृष्टिकर्ता कोन बनेगा ।।
बेटी ही परिवार का ,आधार है ।
बेटी ही जननी ,पालनहारिणी है ।।
✍️ बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि
,अमदाबाद ,गुजरात ।
छंदमुक्त कविता ।
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नमन मंच
#साहित्य संगम संस्थान बंगाल इकाई
#दि0-27/10/2020
#विषय-बेटियाँ(बेटी बचाओ)
#विधा-स्वैच्छिक(लेख)
प्रकृति समान शांत ही,होती हैं बेटियाँ।
सृष्टि निर्माण कृर्तृ भी,होती हैं बेटियाँ।
धरती माँ रूप भी,होती हैं बेटियाँ।
ममता का समंदर सी,होती हैं बेटियाँ।
#बेटी_बचाओ एक ऐसा श्लाघनीय सोच का शानदार अभियान है,जिससे सामाजिक ताने-बाने में लैंगिक अनुपात सम होना जरुरी है।#बेटी_बचाओ_बेटी_पढाओ आभियान की शुरुआत 22जनवरी 2015 में शुरु हुई।100 जिलों तक यह अभियान शुरु हुआ।child sex ratio में 195 देशों में हमारा देश 41वें नम्बर पर था।अर्थात् हमUNICEF के अनुसार बाला लिंग अनुपात में 40स्थान पीछे है।इसी को मध्यनजर रखते हुए देश के माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान की शुरुआत की थी।हरियाणा राजस्थान पंजाब जैसे सम्पन्न राज्यों में बाल लिंगानुपात बहुत कम है।जहाँ की शिक्षा भी बहुत अच्छी है तो फिर बेटियों की स्थिति वहाँ नाजुक क्यों है?यह विचारणीय है।केवल उदाहरणार्थ तीन राज्य ही नही अपितु नगरों और महानगरों में बेटियों की उत्पत्ति स्थिति उतनी बेहतर नही है।वस्तुत हमें सकारात्मक सोच के साथ भ्रूण हत्या जैसे जघन्य अपराध को रोकना होगा,इसके लिए सर्वप्रथम माता-पिता को जागरुक और सकारात्मक होना बहुत जरुरी है।बेटे के प्रति सकारात्मक और बेटी के प्रति नकारात्मक अवधारणा ही भ्रूण हत्या जैसी कुत्सित भावनाओं को जन्म देती है,फिर कैसे बेटियाँ आत्मनिर्भर हो पायेंगी जब उन्हें जन्म लेने से पूर्व ही मार दिया जायेगा,यह एक यक्षप्रश्न है। हमने बहुधा पढा है कि-- #यत्र_नार्यस्तु_पूज्यन्ते_रमन्ते_तत्र_देवता अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा(आदर-सत्कार, सम्मान) जाता है वहाँ देवता भी रमण करते हैं,परन्तु इसी अवधारणा को हम धत्ता बता देते हैं,जब वही बेटी गर्भ में मार दी जाती है।परिवार समाज की प्रथम इकाई वहीं से #बेटी_बचाओ की शुरुआत और सकारात्मक सोच उत्पन्न होनी चाहिए,समाज अपने आप सकारात्मक होगा।सरकार अभियानों की शुरुआत करके जनमानस के अंदर जागरुकता पैदा कर सकती है।इन प्रकल्पों के कारण कन्या भ्रूण हत्या जैसे मामलों पर भारत सरकार और समाज के सभी लोगों को सोचना चाहिए।बाल लिंग अनुपात में यदि खाई पैदा हो गई तो लैंगिक असमानता हो जायेगी,इसलिए सामाजिक विषमताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।आज सभी क्षेत्रों में (शिक्षा,स्वास्थ्य,खेल,विज्ञान,कृषि,सामाजिक,राजनीतिक,रक्षा आदि)में बेटियाँ बेटों से कमतर नही हैं।इसलिए बेटियों को प्रत्येक क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित किया है।
#नारी_तुम_केवल_श्रद्धा_हो
#विश्वास_रजत_नग_पगतल_में
#पीयूष_स्रोत_सी_बहा_करो
#जीवन_के_सुंदर_समतल_में
इस काव्यपंक्ति में नारी का प्रतिरूप ही बेटी है,वह श्रद्धा और विश्वास सम है,इस भावना के साथ हमें बेटियों की सुरक्षा का दायित्व निभाना चाहिए ।
इसलिए बेटी बचाओ के माध्यम से बेटियों को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाकर हमारा देश अपने आप आत्मनिर्भर बन जायेगा।
✍️ लेखक-- रोशन बलूनी
कोटद्वार पौडीगढवाल
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#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#विषय प्रवर्तन
#विषय - बेटियां
विधा - स्वैच्छिक
दिनांक व दिन : 27-10-20 मंगलवार
बेटियाँ
उपहार की प्यासी नहीं कभी होती हैं बेटियाँ
खुशियाँ हर हाल मिले बस चाहती हैं बेटियाँ
खुद से खुद की बातें सारी कर जाती हैं बेटियाँ
अपने दुखों अपने भीतर सह जाती हैं बेटियाँ
एक सुखी संसार के खातिर दर्द सहती हैं बेटियाँ
अपने अधिकारों से भी वंचित रहती हैं बेटियाँ
घर आँगन रौनक बनकर चहका करती हैं बेटियाँ
त्योहारों में हर इक घर की शान होती हैं बेटियाँ
नन्हें नन्हें अपने हाथों से घर को सजाती हैं बेटियाँ
फुदक फुदक कर इधर उधर को इतराती हैं बेटियाँ
जीवन में अपने कुछ करने को दृढ़ होती हैं बेटियाँ
अपनी कार्य कुशलता से सबका मन मोहती हैं बेटियाँ
✍️ सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
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#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#विषय-बेटियां
२७/१०/२०२०
मंगलवार
विधा- कविता
बेटियाँ
फूल सी कोमल
होती है बेटियाँ
जन्म लेती है जब
कोई मनाता खुशियाँ
कोई उदास होता है
कारण बस इतना सा है
आज समाज के हाल पर
अफसोस सब करते हैं
पर बदलना कोई नहीं चाहता
देखकर ये हालात
कहीं दहेज, कहीं तेजाब
कहीं होता बलात्कार
दोष किसका है इसमें
कुछ संस्कारों की कमी
कुछ समाज का वातावरण
और चलचित्र का असर
साथ में इंटरनेट का चलन
पर अब बेटियों को
कोमल नहीं बनाना
उन्हें सिखाना है अब
इन सबसे लड़ना
शिक्षा में उन्हें
संस्कारों के साथ अब
आत्मरक्षा भी सिखाना
और हर तरह से तैयार करना
जिससे वो लड़ सके
अपने खिलाफ होने वाले
हर अत्याचार से डटकर
✍️ धीरज कुमार शुक्ला "दर्श"
झालावाड़ ,राजस्थान
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जय माँ शारदे
नमन मंच
#साहित्य संगम संस्थान बंगाल इकाई
#दिवस - 27/10/2020
#बेटियां (बेटी बचाओ)
#विधा -स्वेच्छिक (कविता)
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महाभारत का दृश्य,
अब भी उभर रहा,
हरण चीर भरी सभा में,
द्रोपदी का होता रहा..... !
आज भी सभा में,
लूट रही है बेटियां,
सिसकती सुबकती,
तड़पती है बेटियां..... !
मौनता के जड़ में,
समाज की है बेड़ियां,
अधूरे सपने ले,
मर रही है बेटियां..... !
मर गया उसका स्वप्न,
रोज मरता हृदय मन,
मरी लाशों पर शिकती,
राजनीती की रोटियां....... !
भाग्यहीन स्वयं को मान,
ना मिलेगा तुझे सम्मान,
क्या पता? किस बाजार,
अस्मत होंगी तार -तार..... !
फिर लोग भीड़ लगाएंगे,
लूटी तेरी मान को ,
बिखरती प्रतिष्ठा को ,
चर्चा का विषय बनाएंगे....!
पैदा ही ना होना बेटी,
गर्भ में ही मर जाना,
तेरे बढ़ते क़दमों को,
चील कौए नोंच खाएंगे.... !
कब तक गरिमा बोझ,
दबेंगी बेटियां,
सुलगती सुबकती,
है आज की बेटियां..... !
✍️ स्वेता गुप्ता "स्वेतांबरी"
(कोलकाता)
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#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
# दिनांक _ २७-१०-२०२०
# विषय - बेटियां
बेटियां
चंचल सी चहकती है
नाजुक सी होती है
जहां ईश्वर की रहमत होती है
उस घर की शोभा होती है बेटियां।
मासुम सी छवि लिए
घरभर में इतराती हुई प्यारी
सी लगती है , कभी रूठती
तो कभी रूठे हुए को मनाती
दया का अथाह सागर होती है बेटियां ।
पापा की चिंता प्रतिपल है करती
उनके लिए जहां से है लड़ती
अपनी हर इच्छा पूरी करवाती
पापा के दिल पर करती है राज बेटियां ।
उदास जब कभी मुझे देख लेती
भीतर तक वो बेचैन हो जाती
बेटी जब गले लग जाती
खुशियां जहां की मुझे मिल जाती
प्यार के रंगों से दिल को सजाती है बेटियां ।
बेटी ईश्वर से मिला अनमोल उपहार
उसी से सजदे होते तीज और त्यौहार
पूण्य जब संचित हो जाता , खुश हो
विधाता भाग्य में रच देता है बिटियां ।
✍️ राजश्री राठी
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#नमन मंच
#साहित्य संगम संस्थान, पश्चिम बंगाल इकाई
#विषय शब्द: बेटियां
#वार:मंगलवार
#दिनांक:27\10\20
#विधा: कविता
##############
जब मैंने गर्भधारण किया,
बिटिया ही जन्मे ये सपना देखा,
दिन-रात प्रभु से की यही आशा,
पूरी हो मेरी बेटी की अभिलाषा।
बिटिया जब तू जन्म ले लेगी,
मुझे माँ कहकर पुकारेगी,
तू मेरे पीछे पीछे चलना,
मेरी ही परछाईं बनना।
पिता का अपने मान बढ़ाना,
भैया की रक्षा सूत्रधार बनना,
विषाद ना हो किसी को तेरे जन्म से,
इतनी ऊंँचाई पर तुम चढ़ना।
तुझको पाकर मैं तो,
धन्य धन्य हो जाऊँगी,
दोनों कुल का तू मान बढ़ाना,
मैं अपने भाग्य पर इठलाऊंँगी।
✍️ अभिलाषा "आभा"
गढ़वा (झारखंड)
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नमन मंच
साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
विषय बेटीयाँ
दिनांक 27/10/2020
विधा कविता
नन्हीं प्यारी बिटियाँ रानी
सबकी दुलारी बिटियाँ रानी
चहक रही
महक रही
घर आँगन में
दमक रही
बेटी के रूप अनेक
फिर भी बेटी एक
पापा की राजदुलारी
मैया की प्यारी
देवी के स्वरूपों में
बेटी पूजी जाती हैं
बेटी कितनी महान हैं ।
ये ईश्वर का वरदान हैं ।।
बेटी के रूप अनेक
फिर भी बेटी एक
साक्षात देवी रूप
बेटी होती अनूप
फिर भी दुनिया में
तिरिस्कार
यौन शोषण
दहेज
और
जघन्य अपराध
फिर भी चिंतन नहीं
मनन नहीं
बेटी नहीं तो
संसार नहीं
बेटी है
तो बहन
माँ
पत्नी
दादी
ताई चाची
बुआ
सब रिश्ते
नाते जुड़ते हैं
✍️ अमित कुमार बिजनौरी
कादराबाद खुर्द स्योहारा
जिला बिजनौर उ०प्र०
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# नमन मंच
# साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल ईकाई
# विषय :- बेटियां
दिनाँक :- 27/10/2020
विधा :- कविता
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📚✒️
**बेटियां**
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बेटी लक्ष्मी,बेटी दुर्गा
बनकर घर घर आती है |
पर बात समझ में ना आये
क्यों दुनिया इन्हें बताती है |
सभी बेटियां हमको प्यारी
भोली भाली सूरत न्यारी |
मैं संदेशा देता हूँ ---
उठो बेटियों सशक्त बनों |
तुम सब कुछ कर सकती हो
संघर्ष पथ पर खुद ही चलो
किसका मुंह अब तकती हो ?
रावण कंसों की बस्ती पर
बन अंगारे बरस पड़ो |
अबला का चोला फेंक आज
रणचंडी सा टूट पड़ो |
युग परिवर्तन माँग रहा है
तुम उसकी बुनियाद धरो
प्रलय लाकर इस धरती पर
फिर से नवनिर्माण करो |
भारत की गौरव गाथा का
फिर से नया बखान करो |
ये धरा कृष्ण गौतम का है ,
ये बुद्ध राम सीता का है ,
ऋषि मुनि फकीरों का है ,
तुलसी नानक गीता का है |
फिर सबका पालनहार बनो ,
डूबती नैया का पतवार बनो |
काली , दुर्गा , मईया बनकर
तुम सबका उद्धार करो |
✍️ एम. एस. अंसारी(शिक्षक)
कोलकाता पश्चिम बंगाल
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#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#विषय_प्रवर्तन
#विषय_बेटियां
#विधा_पद्य
#दिनांक_27_10_2020
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गृह का अनुपम-श्रिंगार,
ये होती हैं बेटियाँ ।
प्रभु का पुनीत-उपहार,
ये होती हैं बेटियाँ ।।
चौपाई रामायण की,
ये वेदों की ऋचाएँ हैं ।
गीत, गज़ल,रुबाई, छंद,
मधुरिम कविताएँ हैं ।।
बेटियाँ हैं सुरभित-प्रसून,
गृह के उपवन की ।
ये गंगा, यमुना,सरस्वती की,
पावन धारायेँ हैं ।।
गेह- माला की अंभसार,
ये होती हैं बेटियाँ ।
प्रभु का पुनीत उपहार,
ये होती हैं बेटियाँ ।।
गृह की हैं अंशु- प्रखर,
गृह का आभूषण हैं ।
मंजुल-शुचि-फुलवारी,
गृह का आकर्षण हैं।।
मन्दिर सी पावन अति,
पवित्र -पूण्य गीता हैं ।
काशी, मथुरा, वृंदावन
दुर्गा,लक्ष्मी, सीता हैं ।।
सुर-युक्त झंकृत-सितार,
ये होती हैं बेटियाँ ।
प्रभु का पुनीत-उपहार,
ये होती हैं बेटियाँ ।।
आलय-अम्बर-शशि सी,
ज्योंति ये सुनहरी हैं ।
निलय का प्रकाश-पुंज,
मधु-वेणु-नाद-लहरी हैं ।।
हेमकांति कुटुम्ब की,
हिमाद्रि के निर्झर सी ।
शीतल पवन बिखेरती,
ये बेटियाँ हैं तरुवर सी ।।
मातृ- पितृ का मधुर प्यार,
ये होती हैं बेटियाँ ।
प्रभु का पुनीत उपहार,
ये होती हैं बेटियाँ ।।
✍️ एस पी दीक्षित
उन्नाव
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#साहित्य_संगम_संस्थान_पश्चिम_बंगाल_इकाई
#जय_माँ_शारदे
#मंच_को_नमन
#विषय: बेटियाँ
#दिनांक : 27/10/2020
#दिन : मंगलवार
#विधा : कविता
शीर्षक: बेटियाँ है विश्वास
क्यों चिन्तित हो बाबू जी,बेटी जन्मी जो आज?
न चाहे बेटियाँ कोई तख्तों ताज,
न बनना चाहे वह सरताज ,
निष्ठा और संकल्प से सम्पन्न करेगी हर काज,
पीढ़ियों तक पूज्यनीय बेटी ,ॠणी रहा समाज
कटु वचन और कड़वाहट सह रखती रही कुल लाज
बिन बेटियाँ के जीवन धरा पर रह जाता एक राज
न जन्मती मैया तुमको तो होते कहाँ तुम आज ?
सृजनकर्ता स्वयं आश्रित बेटियों पर तभी तो बेटियाँ सबसे खास।
सम्पूर्ण धरा को अब तो है, सिर्फ़ बेटियों पर विश्वास।
कुलदीपक के चक्कर में न रखों सिर्फ़ बेटों से आश।
बेटियों पर गर्व करों न करेगी यह कभी निराश।
न जनमी जो बेटियाँ तो बढ़ न सकेगा वंश।
विन्ध्येश्वरी मैया जनम बिन क्या कंस होता ध्वंस?
चंडिका के बिन क्या होता चंड- मुंड विध्वंस?
बिन नारी सम्मान के मिटेगा न धरा से नृशंस
न सोचो अब बापू जी बेटियाँ ही है विश्वास ।
✍️ स्वाति पाण्डेय 'भारती'
कोलकाता,पश्चिम बंगाल
#साहित्य_संगम_संस्थान_पश्चिमबंगाल_इकाई
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#साहित्यसंगमसंस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#विषय प्रवर्तन
#विषय - बेटियां
विधा - स्वैच्छिक
दिनांक व दिन : 27-10-20 मंगलवार
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विदा हो जाए शान से बेटियां,
मॉ-बाप का सपना होता है।
फिर क्यों विदा वक़्त वो पिता
बेटी विदाई पर ख़ूब रोता है।
लगी थी मेहंदी बेटी हाथो पर,
वो पहले से ज़्यादा निखरी थी।
खड़े देख मॉ-बाप को सम्मुख,
मुस्कान होंठों पर बिखरी थी।
घोड़ी चढ़ी -निकली बंदोली,
बेटी ख़ुशी के मारे मस्त थी।
आई बारात अंगना के बाबुल
बेटी सपनो में खोई व्यस्त थी।
स्वागत ख़ूब मिला समधी को,
शुभ मुहूर्त फेरे का आ गया।
डाली वरमाला दूल्हे के गले में,
मुखड़ा दूल्हे का उसको भा गया।
शादी के फेरे हो गए पूरे
वक़्त विदाई का भी पक्का हो गया।
ख़ुशी थी जिनके मुखों पर पहले,
वो चेहरा भी नम थोड़ा हो गया।
जाना तो निश्चित था बेटी को,
क्योंकि दूनिया की जो रस्में थी।
निभाऊँगी धर्म मैं वचनो का पूरा,
उसने फेरो में खाई क़समें थी।
चली गई पिया घर उस दिन,
हर दर्द ने आपा खोया था।
बेटी का बाबुल भी उस दिन,
ख़ूब फूट फूट कर रोया था।
बीते दिन और महीने भी बीते,
कोई ख़ैर ख़बर ना आई थी।
बिटिया की मिलने की इच्छा,
मॉ को बार बार ललचाई थी।
कोई अनहोनी की आशंका से,
कलेजा दिन रात घबराता था।
ना बिटिया का भी कोई संदेशा,
ये सोच दिल पूरा हिल जाता था।
एक नई सुबह आया संदेशा,
वो दुखःद बड़ा ही गहरा था।
बेटी की ससुराल में मौत पर,
लगा सख़्त पुलिस का पहरा था।
मॉ-बाप सुन संदेशा झट से,
बेटी के घर को निकल पड़े।
देख फ़र्श पर लाश बिटिया की,
वो फूट फूट कर रो पड़े।
महीने भर के अंतराल में बेटी,
ख़ुद अपनी जान गँवा बैठी।
लग रहा था ऐसा मानो बेटी,
यु ही अंगना में सो रही लेटी।
सांसो को उसकी छीन लिया,
उसके गुनहगार घरवाले थे,
जिन्हें मानती थी वो सब कुछ,
वो ही निकले उसके हत्यारे थे।
दहेज की ख़ातिर मर गई बेटी,
यह दहेज प्रथा भी गंदी है।
मर गई बाप की वो बिटिया,
शायद क़ानून की देवी अंधी है।
✍️ सुधीर सोनी बाली ज़िला पाली राजस्थान
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#साहित्य संगम संस्थान,पश्चिम बंगाल इकाई
#दिन:-मंगलवार
#दिनाँक:-27/10/2020
#विषय:-बेटियाँ
#विधा:-स्वैच्छिक(काव्य)
माँ शारदे के चरणों में वंदन
मंच को सादर नमन
"बेटियाँ"
दिवसं मनाना क्यों पड़ा, आज इस पर करें विचार।
बालिकाएँ ही सह रहीं,क्यों खुद पर अत्याचार।।
जनम हमारा व्यर्थ है, यदि इसका हल ना पायें।
सभी आओ आज प्रण करें,बालिका दुःख ना पायें।।
आज कहाँ ये ना पहुंचीं हैं,खड़ी हुई हैं चोटी पर।
समय आ गया नाज करो अब,अपनी प्यारी बेटी पर।।
बेटियाँ आज हैं सर पे ताज,सबको करना है इनपे नाज।
है शान बढ़ी इनकी खातिर,है इनके कार्य पर गर्व आज।।
बालिका नहीं अब मोहताज,ये खोल रहीं हैं गहरे राज।
अब बढ़ने दो बस पढ़ने दो,ये विश्व पटल पर करें राज।।
संकल्प सत्य करने होंगे,इनके पथ स्वच्छ करने होंगे।
ये विकसित और पल्लवित हों,ऐसे प्रयास करने होंगे।।
बेटियाँ कुल गौरव बनी आज,ये उड़ती पंख फैला आकाश।
अब इनको केवल सम्बल दो,ये तम हटा दिखाएँ उजास।।
✍️ राम प्रकाश अवस्थी(रूह)
जोधपुर, राजस्थान
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नमन मंच 🙏
#साहित्य संगम संस्थान बंगाल इकाई
#दिनांक-27/10/2020
#विषय- बेटियाँ
#विधा- स्वैच्छिक
"बेटियाँ"
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार,
रो रही आज की लाचार बेटियाँ,
चीख रही आज उनकी हर एक जख्म,
शिकार होती हर रोज दरिंदो की,
बनाते अपनी हैवानियत का शिकार,
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार!!
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार,
बेटी बचाओ वाले देश में मर रही रोज बेटियाँ,
हाथरस हो या हो उन्नाव की लाडली,
स्त्री को अब क्यों समझा जाता वस्तु समान,
दिन हो या रात खुली साँस नहीं लेना आसान,
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार!!
ओ माँ! यह कैसी तुम्हारी संसार!!
समय रेखा की खींची हरदम ऐसी लकीर,
रोज हरण कर रहा रावण एक नयी सीता,
चिरहरण हो रही आज भी द्रोपदी की,
सब तरफ बस फैला भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार,
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार!!
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार,
गंगा जैसी पवित्र माता यहाँ बसती,
धरती की गोंद की सब ठंडक लेते,
फिर भी छल्ली कर देते उसी की जिस्म,
सीने पर अब वहसी भोक रहे हथियार,
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार!!
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार,
हर रोज की यही दस्ता हो गयी,
कोई गली मोहल्ले बाकी ना रही,
उम्र की भी सिमा की ना लाज रखी,
तड़प उठती आत्मा ना कोई दिखता आसार,
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार!!
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार,
दहशत इस कदर छाई है,
अपने ही घरों में लगता अब सुरक्षित नही,
हर बार और बार-बार होता यह खेल खतरनाक,
दिखती अब हर एक अजनबी में भयानक पशु खूंखार,
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार!!
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार,
पीड़ा ये दुखदायी बया करे पर कोई ना सुनवाई,
माता-पिता की जो थी लाडली,
छप कर रह जाती बस अखबारों की एक कहानी,
देख जिस्म की हालत फिर भी आज़ाद घूमते पापी दुराचार,
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार!!
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार,
देखी ऐसी बर्बरता,राखी की भी भूल गए मर्यादा,
भेड़ियों ने इस कदर नोंच खाया,
वर्दी धारीयो ने भी क्या खूब फर्ज निभाया,
पूछती हर एक बेटी "सुरक्षा" की किससे करे गुहार???
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार!!
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार,
रोज तुम्हारी सब वंदना करते,
इस समाज में नारी भी पूजी जाती,
फिर क्यों तड़प रही आज तुम्हारी संतान,
इतने कष्ट झेली बेटियाँ क्यों तुम हो आज लाचार,
ओ माँ!यह कैसी तुम्हारी संसार!!.....✍
✍️ सरिता श्रीवास्तव
आसनसोल(पश्चिम बंगाल)
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साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
नमन मंच
विषय-बेटियाँ
विधा -स्वतंत्र
दिन -मंगलवार
दिनांक-27/10/2020
बेटियाँ
बेटियाँ यूँ ही हर किसी के घर जन्म नहीं लेती,
किस्मत वाले है वो..
जिनके घर बेटियाँ जन्म लेतीं हैं।
ये बेटियाँ.. जन्म तो एक बेटी के रुप में लेतीं हैं
किंतु.. हर रिश्ते को निभाना इन्हें बहुत ख़ूबसूरती से आता है।
आँगन की सोन चिरैया .तो भाई की
लड़ाई कर खुशियों की चाबी।
पूरे घर की यदि डॉक्टर तो माँ की सहेली ।
झूठे मुँह फुला यदि बातों को मनवाना आता है,
तो पापा के सिर दर्द में ..सिर दबाना भी आता है।
घर के चौक की माँ तुलसी
और घर की बेटी..लक्ष्मी,
सच है..
बेटियाँ यूँ ही हर किसी के घर जन्म नहीं लेती,
किस्मत वाले है वो..
जिनके घर बेटियाँ जन्म लेतीं हैं।
✍️ वर्तिका अग्रवाल
वाराणसी
उ.प्र.
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नमन मंच
#साहित्य संगम संस्थान
पश्चिम बंगाल इकाई
दिनांक 27/10/ 2020
दिन- मंगलवार
#विषय-बेटियां
विधा- कविता
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सुख दुःख में काम आती हैं बेटियां
जीवन भर साथ निभाती हैं बेटियां
मां-बहन-बेटी-बहू
कितने फर्ज निभाती हैं बेटियां
पढ़-लिख कर मान बढ़ाती हैं बेटियां
दुःख-तकलीफ मां-बाप की
सह नहीं पाती हैं बेटियां
सुन संदेश मां-बाप के परेशानियों की
नंगे पांव दौड़ी चली आती हैं बेटियां
जीवन भर साथ निभाती हैं बेटियां ।
भाई की कलाई पर बांध स्नेह का धागा
रक्षा कवच बन जाती हैं बेटियां
वक्त पड़े तो दुर्गा-चण्डी-काली
बन जाती हैं बेटियां
बेटी रूप घर बाबुल का चहकाती हैं बेटियां
पत्नी रूप घर पति का महकाती हैं बेटियां
स्नेह से अपने घर-आंगन को
स्वर्ग बनाती हैं बेटियां।
✍️ सुनील कुमार
जिला-बहराइच,उत्तर प्रदेश।
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नमन....मंच
#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
विषय....#बेटियाँ
विधा.... #कविता
दिनांक.....27/10/2020
दिन..... #मंगलवार
---: बेटियाँ :---
लक्ष्मी की वरदान , होती हैं बेटियाँ ।
घर - घर की सम्मान , होती हैं बेटियाँ ।।1।
मारो मत अब भ्रूण , करिये न सृष्टि सून ;
सुस्मित कुसुम प्रसून , होती हैं बेटियाँ ।।2।।
स्वच्छ गुणों की खान,कुदरत का अनुदान ;
लड़कों से विद्वान , होती हैं बेटियाँ ।।3।।
करो तु इनसे प्यार , यही सृष्टि आधार ;
गुणी बहुत सरकार , होती हैं बेटियाँ ।।4।।
रहेंगी घर कुछ दिन , गुण में करें प्रवीण ;
भाग्यवश पराधीन , होती हैं बेटियाँ ।।5।।
हर गुणों में लायक , संकट में सहायक ;
माँ - बाप सुखदायक , होती हैं बेटियाँ ।।6।।
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✍️ आचार्य धनंजय पाठक
पनेरीबाँध
डालटनगंज , झारखंड
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नमन मंच
#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई।
#विषय -बेटियां
भ्रूण हत्या
कोख की वो कन्या ,उसे जन्म तो लेने दो
पुकार कर के कह रही ,इस धरती पर आने दो
अपना न सको मुझे ,क्या मेने ऐसा पाप किया
दिखला न सको मुझे दुनिया ,क्या मेने गुनाह किया
मत करो अपराध ऐसा ,मुझको भी मुस्कुराने दो
पुकार कर के कह रही ,इस धरती पर आने दो
स्वयं समझती हु बिन बोले तुम्हारे भावो की वाणी को
चंद वेश में छिपी असुरता की हर कुटिल कहानी को
सहज निष्कपट होकर ,मुझको खुश रह जाने दो
पुकार कर के कह रही ,इस धरती पर आने दो
ऋषि के ये शब्द है ,ऐसे धधकते अंगारे
जो मुझ अबला को मारे, विकृत रूप वो धारे
रुढ़िवादी की झंझा में, मुझको न मर जाने दो
पुकार कर के कह रही, इस धरतीपर आने दो...!
✍️ स्वाति 'सरू' जैसलमेरिया
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#साहित्य संगम संस्थानबबंगाल इकाई
दिनांक 27.10.2020
दिन - मंगलवार
बिषय - बेटियाँ
विधा - कविता
शीर्षक - बेटियाँ
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आन- बान-शान अभिमान हैं बेटियाँ
हमारे घरों की सम्मान हैं बेटियाँ ।
बाबुल की नाक हैं माँ की पहचान हैं
बुजुर्गों के खुशियों का संसार हैं बेटियाँ ।
पिक की कूक हैं खग की चहचहाहट हैं
सप्तसुरों से आँगन सजाती हैं बेटियाँ ।
घर का श्रृंगार हैं जीवन का मल्हार हैं
महक उठता घर जहाँ रहती हैं बेटियाँ ।
घर - परिवार हो या कोई व्यापार हो
बेटों से अब कंधा मिला रही है बेटियाँ ।
साहस बेटियों में अदम्य कूट-कूट भरा
सीमाओं की रक्षा भी करने लगी बेटियाँ ।
इतनी खुबियों से जब बेटियाँ भरी हुई
रे मुर्खों मारते क्यों कोख में हो बेटियाँ ।
अगर बेटियाँ इस धरा पर नहीं रहीं
तुम्हारे बेटे किस घर से लाएँगे बेटियाँ ।
अभागिन बेटियाँ जो इस जहां में आ गयीं
कामान्ध चीरहरता क्यों रौंदता हैं बेटियाँ ।
बेटी बचाने के लिए 'हिन्द' कब जागोगे
चाहते भारत से क्या मिट जाएँ बेटियाँ ।
✍️ जय हिन्द सिंह'हिन्द'
आजमगढ़,उ0 प्र0
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#सहित्यसंगमसंस्थानपश्चिमबंगाल इकाई
#विषय-बेटियाँ
#विधा-पद्य
#दिनांक-27/10/2020
फूल सी कोमल और नाजुक होती हैं बेटियाँ,
भावनाओं से लबरेज़ सरल होती हैं बेटियाँ,
हर घर की रौनक उनसे है होती ,
हर आँगन की तुलसी होती हैं बेटियाँ।
इनके बिना है भाई की कलाई है सूनी,
इनके बिना त्योहार की मिठाई है सूनी,
चिड़ियों की चहचहाहट सी इनकी बोली,
इनके है दम से घर में है रोशनी।
आज घर में है प्यारी सी बिटिया,
फिर भी अस्मत पर उनके है खतरा,
कानों में फब्तियां इनके हैं गूँजती,
कही दहेज के आग में हैं ये जलती।
गर्भ में ही मार दी जाती हैं बेटियाँ,
जन्म पर कई घर में है मातम सी छाती,
कई घरों में शोक मनाई हैं जाती,
कई घर में बोझ सी समझी हैं जाती।
सीमा पर प्रहरी बनकर डटी ये,
चाँद को छूती हिमालय पर चढ़ी ये,
डॉक्टर इंजीनियर शिक्षक बनी ये,
फिर भी अधिकारों के लिए याचना करती वो।
कई बार प्रेम के नाम पर ठगी जाती ,
कई बार वासना की भट्ठी में जली जाती,
कई बार अन्याय अनीति के शिकार बनी जाती,
कई बार दोहरे मापदंड के अधीन हुई जाती।
आज जरूरत है बेटियों को सम्मान मिले,
देवी बनाकर मत पूजो पर इंसान सा व्यवहार मिले,
उनकी सुरक्षा हो इस समाज में,
न कोई यहाँ रावण बन पाये न उसको अपहरण का सौगात मिले।
✍️ रूचिका राय , सिवान बिहार
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#नमन साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#दिनांक-27/10/2020
#दिन- मंगलवार
#विषय- बेटियाँ
#विधा- स्वतंत्र
गृह उपवन की मधुर सुवास हैं बेटियाँ,
माता-पिता की सुहृद, सरस मिठास हैं बेटियाँ।
जीवन चमन की सुरभित फुलवारी हैं बेटियाँ,
माँ की मंजुला आँचल की किलकारी हैं बेटियाँ॥
हिंद की पावन धरा में सिरमौर हैं बेटियाँ,
एवरेस्ट के उत्तुंग शिखर की गर्व हैं बेटियाँ।
धरती से आसमान तक उड़न परी हैं बेटियाँ,
देश की सरहद में अटल प्रहरी हैं बेटियाँ॥
स्निग्ध स्मित की मधुर मुस्कान हैं बेटियाँ,
परिजनों का मधुर कलरव तान हैं बेटियाँ।
सीता, गीता, सावित्री, साक्षात दुर्गा हैं बेटियाँ,
काली, महालक्ष्मी, लोपा, मुद्रा हैं बेटियाँ॥
पवन रिश्तों का अनमोल बंधन हैं बेटियाँ,
हिंद के स्वर्णिम धरा में पुनीत वंदन हैं बेटियाँ।
भाई के कलाई का नाजुक डोर हैं बेटियाँ,
ममतामयी माँ की दृग कोर हैं बेटियाँ॥
अति व्यापी अखिल ब्रह्मांड में महान हैं बेटियाँ,
जीवन की आन, बान, शान हैं बेटियाँ।
भारतीय सेवा में महारत हासिल की हैं बेटियाँ,
अंतरिक्ष तल में पग धारित की हैं बेटियाँ॥
✍️ मनोज कुमार चन्द्रवंशी
बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश
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साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल
विषय प्रवर्तन
विषय बेटियां
विभा मुक्त कविता
दिनांक 27 अक्टूबर 2020
पहले धूल में खेलती थी
गोटियांँ,
अब उड़ रही गगन में चढ़ रही चोटियांँ।
मत कहना अबला अब ये हो गई सबला,
नही बेटों से कम अब रही बेटियांँ।।
बेटी के स्वागत में भी बजाओ अब थाली,
जैसे बेटों के जन्म पर बजती है ताली।
अब बेटियां बेटों से रही कमतर कहां ?
बेटी तो दो कुलों की करती है रखवाली।।
ममता की पुतली, मन से यह नेक है,
फिर भी नारी जीवन के बाधा अनेक हैं।
मिट जाए समाज में सब भेद भाव तम,
प्यारी दुलारी बेटी अनेकों में एक है।।
नारी शक्ति की रक्षा में ज्वाला जलाओ,
दहेज रूपी दानव से इसको बचाओ।
हम सफल कर रहेंगे महत्तम अभियान,
आओ अब बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ।।
✍️ रामप्रवेश पंडित,
मेदनीनगर ,झारखंड।
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नमन मंच
#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#विषय-बेटियाँ
विधा-कविता
प्यारी ये बेटियाँ
हृदय की धड़कनों में समायी हैं बेटियाँ,
घर में नाजुक फूल सी पली हैं बेटियाँ,
रहतीं जो घर में प्यार ही देती हैं बेटियाँ,
हँसती हैं तो थकान हर लेती ये बेटियाँ।
माँ को तो आनंद से भर देती बेटियाँ,
पिता के दुलार में न्यारी हैं बेटियाँ,
मकान को भी घर बनाती हैं बेटियां,
बस मोह और प्यार हारी हैं बेटियाँ।
माँ की ममता का हैं सम्मान बेटियाँ,
पिता के शौर्य का हैं अभिमान बेटियाँ,
भाई के सहज प्रेम की हकदार बेटियाँ,
हैं प्रेम पथ सम्मान की पहचान बेटियाँ।
आँगन की महक और हैं राजदार बेटियाँ,
परिवार की संस्कृति की अभिमान बेटियाँ,
देश के विकास की कर्णधार बेटियाँ,
सबके दिलों पर कर रहीँ हैं राज बेटियाँ।
✍️ स्नेहलता द्विवेदी।
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नमन मंच🙏🙏
# साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
# विषय प्रवर्तन
# विषय -बेटियां
# दिनांक-27/10/2020
# दिन- मंगलवार
# विद्या -कविता
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कहते हैं बेटे भाग्य से होते हैं,
पर सौभाग्य से होती है बेटियांl
जिस घर में जन्म लेती हैं,
उस घर का भाग्य बदलती है बेटियांl
सरस्वती, दुर्गा, काली, लक्ष्मी,
देवियों का स्वरूप होती हैं बेटियांl
नवरात्र में पूजी जाती है 9 दिन,
फिर क्यों सताई जाती हैं बेटियां?
है जग को यह हंसाने वाली
फिर क्यों रुलाई जाती है बेटियां?
प्रेम सुरक्षा की भावना होती है,
बदल जाति भावना, जब गैर हो बेटियांl
फूल सी नाजुक ही क्यों कहलाती है बेटियां,
चाबुक सी कठोर क्यों न बन जाती है बेटियांl
सिसकियां भरती रहती खुद ही ये,
दरिंदों को क्यों ना खून के आंसू, रुलाती है बेटियांl
शहर से गांव तक लुटती हैं बेटियां,
पल पल जिंदगी में घुटती बेटियांl
अपने पंखों को खुद में समेटती बेटियांl
काश दरिंदों को सरे आम पिटती ये बेटियांl
जाग उठो अपनी शक्ति पहचानो करूँ तुम्हारा आह्वान हे बेटियांl
आँच आए जो तेरी आबरू पर, चंडी दुर्गा काली बन जाना हे बेटियांl
✍️ चंद्रमुखी मेहता
जिला बलरामपुर छत्तीसगढ़
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#नमन मंच
#साहित्य संगम संस्थान नई दिल्ली
#विषय-बेटियाँ
#विधा-स्वैच्छिक
#दिनांक-27.10.2020
#शिल्प-घनाक्षरी(8,8,8,7)
.......
* करम जली बिच्छ रे*
बेटी विलखती बैठी,अाँगना बीचो -बीच रे,
कौवा भी मुंडेर बोले,
काँव- काँव खीझ रे,
बूढ़ियो माता रे ऐंठे,
करम जली बिच्छ रे,
दुअरे बाबा भैया हो,
सोचे रे नैना ढार/
हाय!जन्मी क्यों मैं सूता,
मारे ताना जमाना,
गर्भ गृह में जैसेे -तैसे,
मारो पलान ठाना,
बच.गई कृपा ईश की,
चाकू कफ़न लाना,
माँ थी चीखी डोका फाड़
हाय लाडो न मार/
बेटी गौ लक्ष्मी जान रे,
बंश कोठी अनूठी,
बेटा जन्मे या रे बेटी,
दोनों हीरे अँगूठी,
ममता गुल गुलाब,
रश्मि किरण फूटी,
माने न क्यों जमाना रे,
बेटियाँ सृजजनहार/
✍️ योगेन्द्र प्रसाद 'अनिल'
तेजपुरा,औरंगाबाद(बिहार)
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नमन मंच🙏# साहित्य संगम संस्थान,पं.बंगाल
#दिनांक-27/10/2020
#विषय-बेटियाँ
#विधा-स्वतंत्र(कविता)
कविता
शीर्षक-बेटियाँ
बेटियाँ इस संसार का सार है,
संपूर्ण विधियों का आधार है।
ईश्वर ने अनुपम जगत बसाया,
बेटियों का फूल जग में लगाया।
बेटियाँ आँगन की माँ तुलसी है,
बेटियाँ पूजाघर की कलसी है।
बेटियाँ जिस आलय में मिलती है,
उस आलय में देवियाँ मिलती है।
लक्ष्मी दुर्गा सरस्वती है बेटियाँं,
सुख दुख में संग निभाती बेटियाँ।
देवी बनकर कष्टों से उबारती,
माँ दुर्गा बन राक्षस संहारती।
बेटियाँ ओलम्पिक मेडल लाती,
तिरंगा फहराकर पदक दिलाती।
बेटों का तोड़ती बेटियाँ गुरुर,
सभ्यता संस्कृति से है भरपूर।
बेटियाँ कोमल है कमजोर नहीं,
हाथों में कंगन है अबला नहीं।
सरहद पर खूब बंदूक चलाती,
दुश्मन को वो खूब धूल चटाती।
बेटियों का हो भारत में सम्मान,
कन्यापूजन का है यहीं विधान।
बेटियाँ ईश का अनुपम पुरस्कार,
कभी न हों इनका जग में तिरस्कार।
✍️ सुमन राठौड़
झाझड
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# साहित्य संगम संस्थान प बंगाल इकाई
दिनांक २७-१०-२०२०
विषय बेटियाँ
विधा कविता
कोपल सी बेटियाँ
नव कोपल सी प्यारी बेटियों को समुचित वातायन दो।
उसको जग में आने का एक सुनहरा आंगन दो।।
अपने कर से उनकी रक्षा की जिम्मेदारी अपनी है।
उनकी हँसी ठिठोली गूँजे घर की फुलवारी अपनी है।।
वातावरण तप्त धरती का उन्हें सूखने मत देना।
सदा बचाना क्रूर नजरों से सामाजिक रक्षण देना।।
कोपल न कुम्हलाने पाए निर्मल जल से सिंचित हो।
शिक्षा और संस्कारों की बाड़ चतुर्दिक गुंफित हो।।
फिर देखना यह नव कोपल बड़ा वृक्ष बन जाएगी।
अपनी शीतल छाया से जगती को सरसाएगी।।
बेटियों से दूसरे परिवारों का भाग्य जागने वाला है।
इसीलिए इनकी रक्षा हो यह जीवन का रखवाला है।।
✍️ फूलचंद्र विश्वकर्मा
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#नमन मंच #साहित्यसंगमसंस्थान #पश्चिमबंगालइकाई
#वार- #मंगलवार
#विषय- बेटियां
#विद्या- #कविता
#दिनांक-27/10/2020
" #बेटियां#
मत मारो मुझे कोख में मां, मेरी इतनी अभिलाषा है,
मत फेंको मुझको कूड़े में ,मुझको भी दुनिया देखनी है।
क्यों ,नहीं सुनते बेटी की करुण पुकार, जीने का अधिकार उसे भी है,
बेटा बेटी में फर्क है क्यों, समान अधिकार क्यों नहीं है।
मां ,मैं भी पंख लगा कर के, ऊंची उड़ान भरना चाहती हूं,
मां पापा, भैया की तरह ,आप की लाडली बनना चाहती हूं।
जिस दिन मैं घर में आऊंगी, घर स्वर्ग तेरा बन जाएगा,
कोई गुड़िया, कोई मुन्नी ,कोई लाडो, कहकर बुलाएगा।
मां ,दादी ,काकी ,नानी, तुम सब, भी तो एक नारी हो,
फिर मुझसे भेद ये कैसा है, मैं भी तो, लक्ष्मी, दुर्गा जैसी हूं।
ईश्वर की इस सृष्टि का, बेटी ही आधार होती है,
बेटी ही तो दो-दो कुलों ,की शोभा होती है।
जैसे बेटे को पालते हो, बेटी को वैसे ही पालो तुम,
मिले बराबरी का दर्जा, ये बेटी की अभिलाषा सुन।
बाबुल के घर की तुलसी हूं, ससुराल की गृह लक्ष्मी हूं,
फिर भी ना जाने क्यों, दहेज की पिडा़ सहती हूं।
तन मनसे सेवा करती हूं ,फिर भी जलाई जाती हूं,
इस पुरुष प्रधान ,समाज में , हैवानियत को ही सहती हूं।
कब तक, सिसकती रहूंगी मैं ,तुम कब समझोगे पीड़ा को,
कब सुरक्षित होऊंगी मैं ,सुनो तुम बुरी नजर वालों।
मेरी अभिलाषा बस इतनी, तुम नारी का सम्मान करो,
बेटी हो ,बहन हो ,या मां ,तुम नारी पर अभिमान करो।
✍️ रंजना बिनानी
गोलाघाट असम
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#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल मंच को नमन।
#दिनांक : 27 अक्टूबर 2020.
#दिन : मंगलवार।
#विषय : बेटियां।
।रचना।
वह भी सपनों की ही साहील,
माता पिता के प्यार की मंजिल।
फिर, मायूसी क्यों, छा जाती है,
जब जन्म लेती घर में बेटियां।
घर घर में कन्या पूजा में देखा,
लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती बेटियां,
सूख दुख में वह साथ भी देती,
फिर भी क्यों अनचाही बेटियां?
पढ़ती, लिखती, नाम कमाती,
शरहद पर भी वह बम बरसाती,
अनचाही, अनसुनी, सहमी सी,
क्यों, घर में बंद रहेंगी बेटियां?
बेटा, होता घर के लिए जरूरी,
पर बेटी भी नहीं कोई मजबूरी
कभी ना हो उसका तिरस्कार,
बेटियां ईश्वर की ही पुरस्कार।
✍️ दामोदर मिश्र पूर्व सैन्य अधिकारी,
पलामू, झारखंड।
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# सादर नमन -
# साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई #
विषय - बेटियाँ
##फूल की नाज़ुक डाली सी होती हैं बेटियाँ,
पंख नहीं है फिर भी चिड़िया सी उड़ती है बेटियाँ,
कल कल बहती नदी के जल सी निर्मल होती हैं बेटियाँ,
सुख दुःख में भी ठंडी हवा सी शीतल होती हैं बेटियाँ,
चुल्हा चक्की, चूड़ी, गुड़िया जैसे खिलोनौ से खेलती हैं बेटियाँ,
बचपन से ही अनजाने में अपनी गृहसती सजाती हैं बेटियाँ,
नाजुक अपने हाथों में रिश्तों की डोर मजबूती से थामती हैं बेटियाँ,
घर परिवार की रक्षा हेतू चट्टान सी अड़ जाती हैं बेटियाँ,
रोको ना इनको बढ़ने दो आगे क्योंकि उदाहरण नये बनाती हैं बेटियाँ,
मिट्टी के घरोंदो से लेकर चाँद तक दुनियां भी सजाती हैं बेटियाँ।
✍️ संध्या सेठ
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#नमन साहित्य संगम संस्थान बंगाल इकाई मंच
#दिनांक - 27/10/2020
#दिन - मंगलवार
#विषय - बेटी
#विधा - संस्मरण
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बात कुछ वर्ष पहले की है "सुरेश" को एक बेटी होती है!तो घर में मानो मातम सा छा जाता है । क्योंकि उनकों पहले से ही तीन बेटियाँ थी, और दो लड़की को अबॉसन भी करवा चुके थे। इस बार पूरे परिवार को बहुत उम्मीद थी कि,शायद इस बार लड़का होगा। लेकिन ईश्वर की लीला के आगे किसकी चली है जो उनकी चलती। डेढ़ महीनें तक उसी को ले कर सभी चिंतित रहते है। सुरेश सोचने लगता है पुत्र की चाह में लड़कियों की लाईन पर लाईन लग गई हैं। कैसे सबकी पढ़ाई-लिखाई, शादी ब्याह करूंगा और प्रतिदिन की तरह काम पर चला जाता हैं।
उसी दिन सुरेश की माँ और उसकी पत्नी विचार करती है कि, सुरेश के आने से पहले इस बच्ची को मार देते है या कही छोड़ आते है। नहीं तो कुछ भी हो जाय वो ऐसा नहीं करने देगा। बच्ची की माँ ये सुन रोने लगती है बोलती है माँ जी ये आप क्या कह रही हो हम नहीं कर सकते ऐसा कुछ। भगवान को कोसने लगती है । हे ईश्वर बेटियां तो है ही इस बार बेटा दे देते तो आपका क्या बिगड़ जाता।
फ़िर शाम को बच्ची को अस्तन पान करवा कर उसे सोते ही एक थैली में डाल दोनो सास बहू नदी के पास जा कर उसे नदी के में प्रवाहित करने की सोचती है तो कोई न कोई राहगीर गुजरते रहते हैं। अब ये दोंनो क्या करें? तो उसे ध्यान आता है उसके शहर में मेला लगा है तो दोनों मेले में रखने को आती है मेले में काफ़ी भीड़ थी और शाम की अंधेरे भी छा गया था तो झट से एक ट्रक के नीचे रख चुप-चाप घर को आ जाती हैं।
कुछ देर पश्चात एक औरत को बच्ची पर नज़र पड़ती है तो चिल्लाने लगती है किसका बच्चा है....? पर कोई नहीं कहता कि किसका है। थाने जा कर वो एक रिपोट करवाती है। जब घर को आने लगती तो पुलिसकर्मि बोलते है आज आप ही इसे अपने घर ले जाइए, कल आपके घर आ कर आगे की करवाई की जाएंगी, बच्ची अभी बहुत ही छोटी हैं। घर आ कर अपने पत्ति को बताती है तो बोलते है हम दोनों की शादी को अठारह वर्ष बीत गए पर संतान सुख की अनुभूति नहीं हुआ है क्यों न हम इसे गोद ले ले। ये सुन पत्नी को माँ की खोई हुई ममता जाग गई और बोली जी ये तो हमारा सौभाग्य होगा हमारे घर लक्ष्मी आई हैं।कानूनी कारवाई के साथ बच्ची को वो दम्पति बच्ची को गोद ले लेती हैं।
इधर जब रात को करीब दस बजे सुरेश घर आता हैं तो माँ-पत्नी की इस करतूत से नाराज़ होता हैं। फुट-फुट कर रोते रोते बोलता है जो भी थी मेरी संतान थी। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था, तो माँ बोलती है तेरी बड़ी बहन को भी पांच लड़की है उसकी बेटी इतनी पढ़ी लिखी और गोरी चिट्टी है फिर भी शादी के लिये पांच लाख,आठ लाख तो दस लाख लड़के वाले मांगते है और तो और अब तो शादीशुदा व गरीब घर का लड़का भी नहीं मिल पा रहा है। कितना मुश्किल है शादी के लिये सही परिवार तलाश करना तुमको कुछ नहीं पता हैं।
ख़ैर, अब बच्ची को नई परिवार मिला है वहां उसकी धूम-धाम से उसकी आने पर पूजा-आराधना और जश्न मनाया जाता है। बच्ची को बहुत प्यार से रखते है और एक साल बाद उसकी अचानक इतनी तबियत बिगड़ जाती है कि अस्पताल में चिकित्सक मृत्यु घोषित कर देते हैं।
✍️ पुजा कुमारी साह
जमशेदपुर, झारखंड।
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मंच को नमस्कार।
दिनांक - 27-10-2020
विषय - बेटियाँ
विधा - स्वेच्छिक (काव्य रचना)
कवि - राजकुमार प्रतापगढ़िया
(स्वरचित)
(जहाँ हमारे देश में बेटियों को माता का रूप मान कर पूजा की जाती है, वहीं आज भी बहुत से दहेज लोभी राक्षस दहेज के लालच में बेटियों को प्रताडित करते नही थकते। कभी-कभी तो बेटियों को अपनी जान से भी हाथ धोना पडता है। अपनी निम्नलिखित काव्य रचना के द्वारा समाज को एक संदेश देने की कोशिश की है।)
** कविता**
जिंदगी हंसी-खुशी हो,
रूप-धूप सेकती।
फूल पर नजर ,अगर हो
शूल कहाँ देखती ।।
लाड-प्यार से पली जो
बेटीयां चितचोर थी
जल रही है आज क्यों
वो आग में दहेज़ की।-2
रुप-रंग संगती
माँ का एक अंग थी।
थी छवि वो भोर की
बसंत की उमंग थी।।
प्रेम की फुआर ले
स्वपन पिया रास ले।
चल पडी थी साथ जो
मन में एक आस ले।।
तन-मन सौगात जो
पिया समझ सहेजती।
जल रहीं है आज क्यों
वो आग में दहेज की।।
फूल था हृदय का जो
घर-आँगन मे खिल रहा।
दान कर दिया उसे
बाग महके किसी ओर का।।
बेटियों का दर्द कोई
पूछ ले उस बाप से।
जिसने दिया माथा रख
पहुना के पाँव पे।।
सिर झुका विदा किया
नेत्र जल भर मेघ सी।
जल रही है आज क्यों
वो आग में दहेज की।।
बन मूक देखता समाज।
हो विवश वो अंतकाल।।
क्यों नही कोई सुन रहा है
बेटीयों की ये पुकार।।
प्रश्न है खडा-खडा
सिर झुका हो तार-तार
क्यों नही पहुँच रही है
कान तक व्यथित गुहार।
चीखती पुकारती
पीडा पूछ झेलती।
विवाह प्रेम सूत्र है तो
भेंट क्यों दहेज की।।-2
जल रही क्यों बेटीयाँ
आग में दहेज की।।
✍️ राजकुमार प्रतापगढीया
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# नमन मंच
#साहित्य संगम संस्थान, पश्चिम बंगाल इकाई
#साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता
# दिनांक : २७/१०/२०, मंगलवार
# विषय : बेटियां
# विधा : कविता (स्वतंत्र )
बेटियां घर को चलातीं
बेटियां घर को बसातीं
बेटियों से बनता परिवार है
और बेटियों से ही रचता नया संसार है
आज की बेटी--
न जाने कितने नये रिश्तों की जननी है
बेटी ही तो कल की भाभी,नन्द या पत्नी है
उसने ही जन्म दिया है
राम,रहीम, गांधी को
ईसा, कृष्ण, गौतम को
उसी ने जने,
न जाने कितने साधू, महात्मा या कलाकार
या फिर
प्रशासक, अभियंता या पत्रकार ।
वही तो जननी है
राधा, सीता, रुक्मिणी की
या फिर
द्रौपदी,इन्दिरा,कुन्ती की ।
फिर उनपर आज इतना जुल्म क्यों है?
क्यों अपमानित हो रही वह सरेआम?
और आत्महत्या करने को विवश हैं?
वक्त अब भी है संभल जाओ !
क्यूंकि यदि घटती रही यूं ही बेटियां
तो, बिगड़ जायेगा स्त्री-पुरुष अनुपात
और कुंवारेपन झेलने को विवश होगा पुरुष!
न बस सकेगा एक सुखद परिवार
और हिल कर रह जायेगी
रिश्तों की बुनियाद !
✍️ राजीव भारती
गौतमबुद्धनगर नोयडा(संप्रति)
पटना बिहार (गृह नगर)
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नमन 🙏 :- साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
दिनांक :- 27/10/2020
दिवस :- मंगलवार
विषय :- बेटियाँ
विषय प्रदाता :- आ. कलावती कर्वा जी
विषय प्रवर्तक :- आ. कुमार रोहित रोज़ जी
तुम्हारा और मेरा न, यह बेटियां हमारी है ,
पूजा करने योग्य सरस्वती, दुर्गा वही काली है !
कल भी , आज भी और भविष्य की भी वही लाली है ,
तो हे ! दुनिया वालों सहयोग करो ,वह बेटियां नारी है !
पढ़ने दो , बढ़ने दो जब तक वह कुँवारी है ,
जब-जब आपद आई है , तब-तब बेटियां ही संभाली है !
भंयकर रूप धारी है !
रानी लक्ष्मीबाई बनकर, बेटियां ही दुष्ट को मारी है ,
गर्व है हमें हर एक बेटियां पर ,
वह तेरी मेरी नहीं , वह बेटियां हमारी हैं !!
उसे स्वतंत्र रहने दो , उसी के लिए धरती की हरियाली है ,
बेटियां से ही सुख-सुविधा सारी है !
वह बिहारी न बंगाली वह दुनिया वाली है ,
इज़्ज़त करो यारों , वह बेटियां नारी है !!
बेटियां ही लक्ष्मी उसी से होली,ईद और दीवाली है ,
अभी जो कोरोना जैसी महामारी है !
उससे भी लड़ने के लिए बेटियां तैयारी है ,
हम रोशन बेटियां की रक्षा के लिए,
आप सभी पाठकों के समक्ष बनें भिखारी है ,
मेरी भिक्षा यही है , कि बेटियां की इज़्ज़त करो
वह तेरी मेरी नहीं वह बेटियां हमारी हैं !!
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
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नमन मंच
साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल
दिनांक 27 /10 /2020
विषय -बेटियां
विधा -कविता
शीर्षक - बेटियाँ
जीवन में झंकार ,
बनती है बेटियाँ ।
एक लय -एक ताल
बनती है बेटियाँ
जिंदगी चाहे जैसे भी चलती रहे जिंदगी की एक ,
रफ्तार बनती है बेटियाँ ।
जीवन में सात -सुरों का ,
राग बनती है बेटियाँ ।
जिंदगी का आगाज ,
बनती है बेटियाँ।।
रस्मों -रिवाजों से ,
कितना भी हम डरते रहे
एक त्यौहार बनती है बेटियाँ ।
जीवन का श्रृंगार,
बनती है बेटियां ।
हम कितना भी पराया करते रहे।
बिना कहे इस बात को समझने वाली एक एहसास,
बनती है बेटियां
हमारा अपना -आप ,
बनती है बेटियां ।।
✍️ प्रीति शर्मा "असीम"
नालागढ़ हिमाचल प्रदेश
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#नमन साहित्य संगम संस्थान पं०बंगाल इकाई🙏
#दिनांक-27-10-2020
#विषय-बेटियां
#विषय-स्वैच्छिक (अतुकान्त कविता)
बेटियां
------------
बेटियां हैं अनमोल ,
नुमाइश की चीज नहीं ।
बेटियां जो पत्थर रूपी इंसान को
भाव से पिघला मोम बना दे,
ईंट से जुड़े मकान को घर बना दे।
पग-पग पर हम जिन्हें
संस्कार का बोध कराते,
पग-पग पर हम जिन्हें
कसौटी की तराजू पर चढ़ाते।
टूट कर भी न बिखरती हमारी बेटियां ,
ऐसी शक्ति स्वरूपा हैं हमारी बेटियां।
नहीं लगाते बेटों पर
हम संस्कार का प्रश्न चिन्ह
स्वीकारते नतमस्तक हो
विचारों को उनके ,
युवा पीढ़ी की सोच बता कर।
अपनाते दोहरे मापदंड ,
फिर भी कहलाते मार्डन हम।
यह भेदभाव चाटती-
खोखले आदर्शों को दीमक की तरह,
भाषणों में जो देते उपदेश बराबरी का।
पर यथार्थ में रहते उससे कोसो दूर,
सिद्ध करती उन बुद्धिजीवियों की
संकीर्ण मानसिकता को,
जो सिखलाते संस्कार सिर्फ बेटियों को।
बेटियां जो सजाती आशायें गमलों में,
काटती अपना जीवन
खुशियों के आश्वासन पे।
पाटती संबंधों की अनगिनत खाई ,
उम्मीद रूपी पुल से।
दूजों पे लुटाती,निज अरमानों की हस्ती,
सर्वस्व न्योछावर की भावना से हो प्रेरित।
आज भी पीसता उनका जीवन
समाज के रस्मों के चक्रव्यूह में,
चक्रव्यूह को भेदने वाला
आज कोई अभिमन्यु नहीं।
✍️ सुनीता रानी राठौर
ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)
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बंधुगण!
नमस्कार.
#साहित्य संगम पश्चिम बंगाल इकाई को सादर नमन
#दिवस -मंगलवार
#तिथि -27 /10/2020
#विषय- बेटियां
शीर्षक - होती हैं जहाँ बेटियाँ ..
घर सर्व वैभव से भर जाता
घर हरमन को सुहाता,
मानो घर गीत गुनगुनाता
घर सकारात्मकता से भर जाता।
होती हैं जहां बेटियां......
बेटी की किलकारी मन को छू जाती
मानो घर की हर खिड़की गीत गुनगुनाती,
बेटी के आने-जाने से रसोई की शोभा बढ़ जाती
बेटी की हर प्रतिक्रिया मन को सुहाती।
होती हैं जहां बेटियां ......
बेटी की हँसी करती नव ऊर्जा का संचार
उसका हर शब्द देता नव विचार,
देखकर बेटी को, मिलती प्रेरणा अपार
करें सब अपनी बेटियों से दुलार अपार ।
होती है जहां बेटियां.......
घर में रहती बसंत जैसी सुंदरता
हर दिन लगता है मानो त्योहार ,
करतीं सहयोग घर के कामों में
हर मन को भाता उनका व्यवहार।
होती हैं जहां बेटियां........
👩👩👩👩
✍️ अनिल जैन 'अंकुर'
जयपुर, राजस्थान
____________________________________________
नमन
#साहित्य संगम संस्थान
#प .बंगाल इकाई
#विषय ....बेटी
27 -10-20
बेटी तो है़ सृष्टि की एक महा वरदान ,
बेटी है़ हर रूप में श्रेष्ठ गुणों की खान ।
बेटी माँ का जिगर है तो बाप की होती सांस ,
बेटी दवा जख्म की, होती जीवन की आस।
बेटी से आँगन हरा बेटी है़ जन्नत रूप ,
बेटी घर में पनपती वंश की बेल स्वरूप।
बेटी तो हर विपत्त को चुप चुप सहती खामोश ,
बेटी हँसाती बाप को खुद रोती तकिये आगोश ।
बेटी आगे हो गयी नभ जल थल में खूब ,
बेटी करतीं हैं परवरिश परिवारों का खूब।
बेटी ना अबला रही अब देखो ससुराल ,
बेटी ने चारों दिशा परचम दिये फहराय।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अब ये सीखो ,
बेटी वंश की बेल समझ उसे प्यार से सींचो ।
बेटी ही हर हाल में जीने का बहाना है़ ,
बेटी बाप के होठों का प्यारा मधुर तराना है़ ।
✍️ सुधा चतुर्वेदी मधुर
मुंबई
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नमन मंच #साहित्य_संगम_संस्थान_पश्चिमबंगाल_इकाई
दिनांक - 27/10/2020
विषय - बेटियाँ
किस्मत वालों के घरों में ही होतीं बेटियाँ।
बेटा है हीरा अगर तो पन्ना होतीं बेटियाँ।
दीप है बेटा कुल का होती बेटी रौशनी।
एक नहीं दो दो कुल की लाज बचातीं बेटियाँ।
ताज अगर बेटे से है तो नाज हमारी बेटियाँ ।
बेटा बुढ़ापे का सहारा प्रीत लुटाती बेटियाँ।
दे दो पंख बेटी को तो अम्बर भी छू सकती है।
हो चुनौती कोई सामना हंसकर करतीं बेटियाँ।
जरुरत पड़ जाए तो क्या कर नहीं सकतीं बेटियाँ।
चौका बर्तन ही नहीं जहाज भी उड़ातीं बेटियाँ।
है नहीं कोई अछूता क्षेत्र अब यहाँ बेटियों से।
यम से लेकर प्राण भी वापस ला सकतीं हैं बेटियाँ।
✍️ बरनवाल मनोज अंजान
धनबाद, झारखंड
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नमन मंच 🙏🏻🙏🏻
# साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
# विषय - बेटियाँ
# विधा - कविता
# दिन - मंगलवार
# दिनांक - 27.10.2020
बेटी की अभिलाषा क्यों न करूँ
उसका ही अभिमान क्यों न करूँ
सृष्टि की रचना का आधार है जो
फिर उसका सम्मान क्यों न करूँ
बताओ बेटियाँ पीछे कहाँ रह गई
जिधर देखो वो परचम लहरा गई
गर्व से सर उठाने का मान दिया है
बेटियाँ तो हमारी सिरमौर बन गई
नए जीवन का ये आधार जितना
धरती इनके बिना सूना ही उतना
जन्म इनका तो उद्देश्यपूर्ण होता
हर घर का ही मान बढ़ाती उतना
घर को स्वर्ग का मान दे जाती है
हर कोना देखो ये महका जाती है
सौंप दो जो भी जिम्मेदारी इसको
हुनर का कमाल बता ही जाती है
बोझ है एहसास न कराओ बेटी को
बस त्याग की मूरत न समझो बेटी को
कमतर जो इसको कभी न आंको तुम
अस्तित्व उसका भी है मान दो बेटी को
श्रवण कुमार ये उतनी ही माँ बाबा की
गौरव कहाँ अछूती रही इनसे देश की
काबिलियत की जहाँ भी बात आ जाती
स्वाभिमान बन जाती हर एक मस्तक की
✍️ प्रियंका प्रियदर्शिनी
फरीदाबाद हरियाणा
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जय माँ शारदे
#साहित्य_संगम_संस्थान_सादर_नमन
#विषय_बेटियाँ
शीर्षक - भयभीत बेटियाँ
निष्ठुर हृदय बनकर चल पडे, किसी को रौंद कर।
कैसे मानव हो तुम या हो पशुओं से भी बढ़कर।
जानवर भी हैरान होता देख इंसान की यह धूर्तता।
पंछी भी शर्मिदा होता देखकर यह घृणित क्रूरता।
चीख पुकार सुन कर भी क्यों नहीं तुम्हें दया आई।
ऐसी हवस की भूख इंसान को हैवानियत ही दे पाई।
जिस कन्या का पूजन करते उसी के साथ कर्म घिनौना।
तुम्हारे घर भी माँ, बहन, बेटी है क्या यह पड़ेगा बताना।
व्यथित ह्रदय कैसे कहूँ दोषी सब नहीं, है कुछ चुनिंदा।
कुछेक के कारण आज सम्पूर्ण पुरुष जाती है शर्मिंदा।
घोर कलियुग आया पुरुष बन रहा है आज कैसा दरिंदा।
सोचा नहीं था ऐसे होंगे राम कृष्ण की भूमि के बाशिंदा।
नियमों, बेड़ियों में बाँध संस्कारों से बेटियाँ सींची जाती।
बेटों के लिए क्यों नहीं जंजीरें,नियम सीख बनाई जाती।
चाहो अगर सब बेटियाँ शान से सर उठा कर जी पाएँ।
सब बेटों को दो ऐसी शिक्षा,बेटियों को इज़्ज़त दे पाएं।
अगर लुटेरा घूमेगा आज़ाद भयभीत बेटियाँ सबकी है।
लूटी है एक बेटी की इज़्ज़त,तो लूटा सम्मान सबका है।
सभी निभाओ धर्म इंसान का, छोड़ो बात मज़हब की।
लड़ो मिलकर दरिंदों से हिंदुस्थान, बेटियाँ है सबकी।
कोई जल कर मर गई कोई जिंदा तिल तिल जलती रही।
कल की खिलती खुशहाल परी थी, आज चुपचाप रही।
है मौत के बिस्तर पर गुमसुम बैठी, आँखों में पानी पानी।
बंद आँखों के सामने घूम गई बीती रात की दर्दनाक कहानी।
नारियों पर हो रहे अत्याचारों पर आवाज उठानी होगी।
कोई ऐसी जुर्रत कर ना सके ऐसी अलख जगानी होगी।
✍️ कलावती कर्वा
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नमन मंच 🙏
#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल
#विषय - बेटियां
#विधा-तांका
#दिनांक-27/10/20
#दिन-मंगलवार
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(1)हम बेटियां
भारत की शान हैं
हम ही धर्म
हम ही मजहब
हम ही ईमान हैं |
(2)हम बेटियां
ही जीजाबाई ,हम
ही पन्नाधाय
बेटियां ही कल्पना
रजिया सुल्तान हैं|
(3)बेटियों ने ही
बिखेरी हैं खुशियां
भी जहान में
माता पिता के हाथ
थामे हैं तूफान में |
(4)रूढ़ी विचारों
को मिलकर हम
सब भुलाये
बेटियों को बचाये
बेटियों को पढ़ाये
✍️ श्वेता बिष्ट
श्रीनगर गढ़वाल
उत्तराखंड
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नमन मंच
साहित्य संगम संस्थान,पश्चिम बंगाल इकाई
दिनांक -27.10.2020
विधा -कविता
विषय - " बेटियां "
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मां के कलेजे का टुकड़ा होती हैं बेटियां।
पिता का मान अभिमान होती हैं बेटियां।
रोशन करता है बेटा एक ही कुल को
मगर दो कुलों की लाज़ ढोती हैं बेटियां।
कहते हैं लोग नहीं कोई एक दूजे से कम
हीरा है अगर बेटा तो,सच्चे मोती हैं बेटियां।
ओस की बूंदों सी होती है नाजुक ये
हो ज़रा सा भी दर्द तो रोती हैं बेटियां।
अपनी मुस्कान से घर को स्वर्ग बना देती है
हर पल खुशियों से इसे सजाती हैं बेटियां।
सह लेती है जमाने भर के दर्द और गम
मगर अकेले में आंसू बहाती हैं बेटियां।
पिघलती है आंसू बनकर मां के दर्द से
रोते हुए बाबुल को हंसाती हैं बेटियां।
कांटों की राह पर खुद ही चलती रहेंगी
पर सबके लिए फूल बन जाती है बेटियां।
विधि का विधान है,यही दुनिया की रीत है
अंजलि भर नीर सी होती है बेटियां।
दुनिया ही नहीं ये तो ईश्वर भी कहता है
होता हूं मैं खुश तभी तो होती हैं बेटियां।
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✍️ पवन सोलंकी
अध्यापिका एवम् लेखिका
सुमेरपुर,पाली, राजस्थान।
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बेटियां
बेटियां घर की आन होती है।
बेटियां घर की शान होती है।
बेटियां परिवार की अभिमान होती है।
बेटियां पापा की जान होती है।
बेटियां माँ की अरमान होती है।
बेटियां कुलों की पहचान होती है।
बेटियां भाई की ताकत होती है।
बेटियां कल्पना चावला है।
बेटियां किरण बेदी है।
बेटियां घर संभालती है।
बेटियां खेल जीतती हैं।
बेटियां शिक्षक है।
बेटियां रक्षक है।
बेटियां पायलट है।
बेटियां पीएम है।
बेटियां सीएम है।
बेटियों के घर नहीं होते,
पर बेटियां संसार रचती है।
✍️ डॉ कन्हैयालाल गुप्त किशन
आर्य चौक- बाज़ार भाटपाररानी, देवरिया, उत्तर प्रदेश २७४७०२
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#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#विधा _ कविता
#विषय _ बेटियां
सृष्टि की सृजनहार बेटियां
नव जीवन का आधार बेटियां
दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती
पार्वती, शक्ति स्वरूपा बेटियां
अनमोल सुंदर उपहार बेटियां
माता-पिता का अभिमान बेटियां
हर घर की होती शान बेटियां
रिश्तों का मान बढ़ाती बेटियां
बाबुल को चहकाती बेटियां
ससुराल को महकाती बेटियां
दो घरों को संवारती बेटियां
क्यों पराई कहलाती बेटियां
घर को स्वर्ग बनाती बेटियां
खुशहाली जीवन में लाती बेटियां
स्नेह अपार लुटाती बेटियां
प्यार की डोर से बंध जाती बेटियां
हर क्षेत्र में परचम लहराती बेटियां
अंतरिक्ष तक पहुंच गई बेटियां
ईश्वर का सुंदर वरदान बेटियां
फिर क्यों कोख में मारी जाती बेटियां।।
✍️ प्रेमलता चौधरी
फालना , पाली राजस्थान
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🌷नमन मंच साहित्य संगम संस्थान पश्चिमी बंगाल इकाई
विषय-बेटियाँ
विधा-काव्य
दि.27/10/20
दिन-मंगलवार
बेटी तो आखिर बेटी है
पलकों पे वो पलती है।
गर अंधकार छाए कुल पे
तो बन के शमाँ वो जलती है।
करुणा की प्यारी सी गुडिय़ा
माँ पापा का हाल समझती है,
सभ्य सौम्य इज्ज़त की खातिर
बन कर मोम पिघलती है।
पापा की उम्मीदों का कल
माँ की ममता का मीठा फल,
लक्ष्मी मीरा सीता गौरी इंद्रा के
सद्पद चिन्हों पर चलती है ।
शोहरत मे आगे बढ़ कर
दो कुल का मान बढाती है,
गर ठोकर भी लग जाए
तो हर बार सँभलती है।
आज जमाने में बेटी कब
बेटों से कम पडती है,
खून दूध का कर्ज चुकाने
वो फौलाद मे ढलती है।
पर बेगैरत बेटी जब
तन मन से हया लुटाती है,
शर्मसार होते है पापा
माँ का दूध लजाती है।
अरमानों की अग्नि में
शर्मो लाज जलाती है,
रिश्ते नाते सभी भूल के
घरवालों को छलती है।
डगमगाते कदम उठा के
अपनी राह भूलती है,
उम्र भर का गम देकर
बद मंजिल बदलती है।
✍️ सुशील शर्मा💐
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#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#दिनांक : 27/10/2020
#दिवस : मंगलवार
#विधा : स्वैच्छिक
#विषय : बेटियां
विषय प्रवर्तक : आ० कलावती कर्वा जी
विषय प्रदाता : आ०कुमार रोहित रोज़ जी
बेटियां घर की रोशनी,बेटियां कुल का मान।
आन बान और शान बेटियां,करलो सब सम्मान।
बेटी लक्ष्मी रूप धरा,लिया जगत अवतार।
सरस्वती का रूप धर,ज्ञान का किया प्रसार।
शत्रु का मर्दन करें,बेटियां देवी का अवतार।
वंश में वृद्धि करें,बेटियां मां का रूप संवार।
कुल की दीपक बेटियां,दो घर करें प्रकाश।
बिना बेटियां घर को देखो,कैसे पड़ा उदास।
खिलने दो कलियां जगमें,ये ही फूल खिलाएंगी।
कोख में मत मारो इनको,धरती सूनी हो जाएगी।
बेटियां जग आधार हैं,बेटियां खुशियों का संसार।
नदी नाम सब बेटियां,करती धरती का श्रृंगार।
इज्जत दो हर बेटी को,जगमें खुशियां छाएंगी।
आज के दानव वध करने,बेटियां ही आगे आएंगी।
पुरुषों के कंधे से कंधा,मिला खड़ी हैं बेटियां।
पित्र ऋण पूरा तब होगा,जिस घर में हों बेटियां।
अभी समय है समझले मानव,आदर दे दो बेटियां।
वरना दर दर ठोकर खाना,याद करोगे बेटियां।
✍️ रतन कुमार शर्मा
वरिष्ठ हिंदी शिक्षक
राजुला, अमरेली, गुजरात।
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#साहित्य संगम संस्थान पश्चिमी बंगाल
#दिनांक-27/10/2020
#विषय- बेटियां
#विधा-स्वैच्छिक
रचनाकार-सुरेश मीणा
पता- मेवाड़ भील कोर बटालियन बांसवाड़ा राजस्थान
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रचना-बेटियां
एक औरत गर्भ से थी
पति को जब पता लगा
की कोख में बेटी हैं तो
वो उसका गर्भपात
करवाना चाहते हैं
दुःखी होकर पत्नी अपने
पति से क्या कहती हैं :-
सुनो,
ना मारो इस नन्ही कलि को,
वो खूब सारा प्यार हम पर
लुटायेगी,
जितने भी टूटे हैं सपने,
फिर से वो सब सजाएगी..
सुनो,
ना मारो इस नन्ही कलि को,
जब जब घर आओगे
तुम्हे खूब हंसाएगी,
तुम प्यार ना करना
बेशक उसको,
वो अपना प्यार लुटाएगी..
सुनो
ना मारो इस नन्ही कलि को,
हर काम की चिंता
एक पल में भगाएगी,
किस्मत को दोष ना दो,
वो अपना घर
आंगन महकाएगी........…
😑ये सब सुन पति
अपनी पत्नी को कहता हैं :-
सुनो
में भी नही चाहता मारना
इस नन्ही कलि को,
तुम क्या जानो,
प्यार नहीं हैं
क्या मुझको अपनी परी से,
पर डरता हूँ
समाज में हो रही रोज रोज
की दरिंदगी से........................
😳क्या फिर खुद वो इन सबसे अपनी लाज बचा
पाएगी,
क्यूँ ना मारू में इस कलि को,
वो बाहर नोची जाएगी..
में प्यार इसे खूब दूंगा,
पर बाहर किस किस से
बचाऊंगा,
😨जब उठेगी हर तरफ से
नजरें, तो रोक खुद को
ना पाउँगा..
क्या तू अपनी नन्ही परी को,
इस दौर में लाना चाहोगी,
😞जब तड़फेगी वो नजरो के आगे, क्या वो सब सह
पाओगी,
क्यों ना मारू में अपनी नन्ही
परी को, क्या बीती
होगी उनपे,
जिन्हें मिला हैं ऐसा नजराना,
क्या तू भी अपनी परी को
ऐसी मौत दिलाना चाहोगी.........
👼ये सुनकर गर्भ से
आवाज आती है…..
सुनो माँ पापा-
मैं आपकी बेटी हूँ
मेरी भी सुनो :-
🙆पापा सुनो ना,
साथ देना आप मेरा,
मजबूत बनाना मेरे हौसले को,
घर लक्ष्मी है आपकी बेटी,
वक्त पड़ने पर मैं काली भी बन
जाऊँगी....................
💁पापा सुनो,
ना मारो अपनी नन्ही कलि को, तुम उड़ान
देना मेरे हर वजूद को,
में भी कल्पना चावला की तरह,
ऊँची उड़ान भर जाऊँगी.............
🙅पापा सुनो,
ना मारो अपनी नन्ही कलि को, आप बन
जाना मेरी छत्र छाया,
में झाँसी की रानी
की तरह खुद की गैरो से लाज
बचाऊँगी…..........
😗पति (पिता) ये सुन कर
मौन हो गया और उसने अपने फैसले पर शर्मिंदगी
महसूस
करने लगा और कहता हैं
अपनी बेटी से :-
😞मैं अब कैसे तुझसे
नजरे मिलाऊंगा,
चल पड़ा था तेरा गला दबाने,
अब कैसे खुद को तेरेे सामने लाऊंगा,
मुझे माफ़ करना
ऐ मेरी बेटी, तुझे इस दुनियां में
सम्मान से लाऊंगा..............
😣वहशी हैं ये दुनिया
तो क्या हुआ, तुझे मैं दुनिया की सबसे बहादुर बिटिया
बनाऊंगा........
👨मेरी इस गलती की
मुझे है शर्म,
घर घर जा के सबका
भ्रम मिटाऊंगा
बेटियां बोझ नहीं होती..
अब सारे समाज में
अलख जगाऊंगा!!!
✍️ आदिवासी सुरेश मीणा
मेवाड़ भील कोर बटालियन बांसवाड़ा
राजस्थान-9413960623
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#साहित्यसंगमसंस्थानपश्चिमीबंगाल
#विषयप्रवर्तन
#विधा.. बेटियाँ
#विधा..प्लवंगम छंद
(1)
सोचा मैंने, क्या बेटियाँ बवाल है?
बोला दिल ने,बवाल नही कमाल है।
मानो यकीन ,जलता हुआ सवाल है।
सोचो लोगों ,ये कर रही धमाल है।
(2)
मानो सच अब ,बेटी से परिवार है।
सुंदर है घर,जब बेटी पतवार है।
माँ बन करती ,बेटियाँ देखभाल है।
बेटी करती, अब सेवा हरहाल है।
✍️ रीतूगुलाटी.ऋतम्भरा
हिसार हरियाणा
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मंच को सादर नमन
#साहित्य_संगम_संस्थान_पश्चिम_बंगाल_इकाई
#विषय_बेटियाँ
दिन-मंगलवार
दिनांक-27/10/2020
विधा- गीत
अपने कुल की लक्ष्मी कहलाती हैं बेटियां!
फिर क्यूँ मारी जाती हैं प्यारी बेटियाँ!!
इनके सपने रह जाते हैं सपने!
देते हैं दुःख जिसे समझे अपने!!
पड जाती है पांवो मे इनके बेड़ियां!
मां ही जब गर्भ में बेटी को मारे!
बेटी जीऐ अब किसके सहारे!!
कैसे गूंजेगी घर में किलकारियां!
आओ सपथ लें फर्क ना समझे बेटा बेटी का!
लडकी भी आगे है, है जमाना देखादेखी का!!
सबको पढ़ाओ आगे बढ़ाओ ना करो देरियां!
✍️ शैलेन्द्र गौड
अंबेडकर नगर ( उत्तर प्रदेश)
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मंच को नमन
#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#विषय -बेटियाँ
दिनांक-27.10.020
विधा- कविता
कहाँ सुरक्षित है बेटीयाँ
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गैरों की क्या बात करें,
अपनों के बीच कहां सुरक्षित हैं, बेटियां,
गांव की पगडंडी हो,
या......,
फिर शहर का परिवेश,
हर तरफ ही,
शोषण इसका जारी है,
क्यों भूलते हैं.....?
बेटियां दो कुलों की होती है पुल,
फिर क्यों करते हो.....?
बेटा-बेटी में यह भूल,
जब होती है पैदा बेटी तो,
सिर झुक जाता है पिता का,
क्योंकि दहेज की....?
इस तरह फैली है महामारी,
मानते हो गऱ,
बेटा घर का चिराग है ,
तो बेटी को क्यूँ पराये का राग,
मां की कोख से,
आने देते नहीं बहार,
कोख में ही कर देते हो
इसका "संहार",
गर घर में,
पैदा हुआ बेटा तो,
बाप की होती है वाह वाही,
बेटी हुई तो,
मां की है सारी जिम्मेदारी,
बेटों की चाहत में,
गिर जाते हैं ईस कदर लोग,
कई बार करवा देते हैं,
गर्भ में ही "संहार",
कभ-कभी तो गिर जाता हैं,
पुरुष इतना कि....,
पहली बीवी के होते हुए भी,
कर लेता हैं दूसरी शादी,
बेटी पैदा करना,
क्या नारी की ही पीड़ा हैं ?
हम पुरूषों का,
फिर क्या बनता हैं कर्तव्य ?
सिर्फ नारियों का शोषण करना,
अब भी वक्त हैं,
"बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ" का यह, राग सिर्फ तुम न अपलाओ,
यह "नारे" लिखकर दीवारों पर,
रंगों न सिर्फ दीवारों को,
धर्म समाज के "ठेकेदारों",
और......,
समस्त "पुरुष" जाती की भी बनती हैं, यह जिम्मेदारी भी तुम्हारी,
ऐक दिन खत्म हो जाएगी,
बेटियां जब सारी,
तो मीट जाऐगी,
यह "सृष्टि" सारी,
बेटियां हैं तो,
"सृष्टि-सारी" हैं,
यह जिम्मेदारी है-हम सब की सारी!!
✍️ चेतन दास वैष्णव
गामड़ी नारायण
बाँसवाड़ा
राजस्थान
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नमो# साहित्य संगम संस्थान,
#विषय - बेटियां,
विधा - हाइकु,
नाम - गिरीश इन्द्र,
पता - श्री दुर्गा शक्ति पीठ, अजुवाॅ आजमगढ़, ऊ ०प्र०-२७६१२७.
दि ०-२७-१०-२०२० ई ०.
,
बेटी बचाओ,
आज की जरूरत।
मन में सोच ।।
भ्रूण की हत्या,
जघन्य कृत्य होता।
कहना मान ।।
दया तनिक ,
मन में धार लेना।
है मानवता ।।
बेटा बेटी है,
एक समान जानो।
भेद न कर ।।
बेटी काम है,
आती समय पर ।
बेटा कहां है ?।
०००
✍️ गिरीश इन्द्र।
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नमन मंच
#साहित्य संगम संस्थान
विषय-बेटियाँ
हर एक के नसीब में नही होती बेटियाँ ।
किस्मत से ही मिलती है सबको बेटियाँ।
बागों में खिल रही जो कली वो है बेटियाँ।
कल बृक्ष में बनेगी फली वो है बेटियाँ।
कोहिनूर हीरे से बढ़कर होती है बेटियां।
घर के आंगन की खुशियों का ताज है बेटियां।
बेटी को जन्म दीजिये उन्हें उर से लगाइए।
ममता का आँचल दीजिए संबल बनाइये।
बेटी के दान से बड़ा कोई पुण्य है नही ।
दो परिवारों को नाज बेटी बिना न
ही।
देकर दहेज बेटियों को मत अभिशाप बनाइये।
देकर उचित शिक्षा उन्हें योग्य बनाइये।
ईस्वर की सबसे बड़ी देंन है बेटियाँ।
आंगन की मधुर झंकार है बेटियाँ।
सूना है घर आंगन जहाँ होती नही बेटियाँ।
अधूरे है वो माँबाप जहाँ होती नही बेटियाँ।
✍️ मीना तिवारी
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#साहित्य_ संगम_संस्थान_बंगाल
#विषय_बेटियां
#विधा_स्वैच्छिक
#दिनांक_27_10_2020
मंदिर की आरती,मस्जिद की नमाज होती है बेटियां।
जिंदगी का गान,दुनिया की आवाज होती है बेटियां।
प्रकृति की नींव, मानवता की आधार होती है बेटियां।
सभ्यता और संस्कृति की शुरुआत होती है बेटियां।
आस्था की प्रतीक,हर धर्म की लाज होती है बेटियां।
संसार सागर में,मानव नैया की पतवार होती है बेटियां।
हृदय का भाव,बाबूल के सिर का ताज होती है बेटियां।
भाई का अभिनंदन,मां की मुस्कान होती है बेटियां।
सास की सौगात, ससूर की नाज़ होती है बेटियां।
आंखों की चमक, चेहरे का नूर होती है बेटियां।
रिश्तों के सागर में, स्नेहिल पानी होती है बेटियां।
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई,का त्योहार होती है बेटियां।
चांद की चांदनी,सूरज की रोशनी होती है बेटियां।
वात्सल्य का सागर,ममता की छांव होती है बेटियां।
हाथों की रेखा,हर इंसान की तकदीर होती है बेटियां।
इसलिए कहते है,नसीब वालों के होती है बेटियां।
✍️ डॉ. भगवान सहाय मीना
बाड़ा पदमपुरा, जयपुर, राजस्थान
मोबाइल-9928791368
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नमन मंच
शीर्षक - बेटियां
एक खूबसरत एहसास है बेटियां
प्रकृति की महान रचना है बेटियां
सूरज की पहली किरण है बेटियां
खिलने हुए गुलाब की
खुश्बू है बेटियां
चमकते हुए सितारों की
रोशनी है बेटियां
मां के अांखो की
चमक है बेटियां
पिता के माथे का
चंदन है बेटियां
भगवान का दिया हुआ
अनमोल वरदान है बेटियां
घर के आंगन का
श्रृंगार है बेटियां
श्रद्धा और विश्वास की
मूरत है बेटियां
बाबुल के आंगन की
बगियां है बेटियां
पराएं घर का
सम्मान है बेटियां
होली के रंगों का
त्यौहार है बेटियां
माता पिता के प्रेम का
अभिनन्दन है बेटियां।
✍️ जया वैष्णव ' अनंत '
जोधपुर (राजस्थान)
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#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#विधा _ कविता
#विषय _ बेटियां
दुनियां की हैं पालनहार।
मात पिता का लाड़ दुलार ।।
स्वर्ग बनाए घर संसार ।
करती है वो सबसे प्यार।।
देश का वो अभिमान है।
सबका मान सम्मान है ।।
खुशहाली का नाम है।
पापा की तो वो प्राण है ।।
कुदरत का अनुपम उपहार ।
बेटी करती सबसे प्यार ।।
सृजन करें वह सृष्टि का।
आधार बने धन वृष्टि का ।।
घर घर की वह शान है ।
भाई की वह जान है ।।
रिश्तो की वह आन है।
प्रेम की वह पहचान है।।
खुशहाली का वह आधार।
स्नेह लुटाती वह अपार ।।
डोर प्यार की बांध के ।
सबको अपने साथ ले ।।
सुखी करे वह हर परिवार ।
बेटी करती सबसे प्यार ।।
दुर्गा काली सरस्वती ।
लक्ष्मी स्वरूपा पार्वती ।।
इसके अनेकों रूप हैं ।
सुंदर नए स्वरूप है ।।
नवदुर्गा में पूजन हो ।
आंगन में नित गुंजन हो।।
जीवन की वह आभा है।
बेटी ही तो राधा है ।।
नित्य नए स्वरूप हैं ।
बेटी के ही रूप हैं ।।
इतनी महिमा दान करें।
नूतन नित्य बखान करें ।।
हर क्षण परचम लहराती।
घर की शान बना जाती।।
सेना में भी पहुंच गई ।
रणचंडी सी चमक गई।।
शत्रु का वह करे संहार ।
दुष्टों को देती वह मार ।।
पतिदेव की जान है।
बेटी अनुपम शान है।।
फिर क्यों लूटी जाती है।
निस दिन कूटी जाती है।।
अत्याचार वह सहती है।
डरी और सेहमी रहती है ।।
कब होगा डर दूर कहो ।
कब सुख होगा फिर उसको।।
अब तो उसे बचाओ तुम ।
बेटी को समर्थ बनाओ तुम ।।
✍️ राजा बाबू दुबे
जबलपुर मध्य प्रदेश
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#साहित्य संगम संस्थान बिहार इकाई
विषय_ बेटियां
विधा_ स्वैच्छिक
बेटा -बेटी का भेद मिटाना है अभिमान बेटियां
यह समाज को समझाना है,
मां ही भावी मां के दुख को पहचाने मां को आवाज उठाना है,
बेटी नींव धरा की इस भूमंडल का गहना है
दे शिक्षा का शस्त्र बेटी को दोधारी तलवार बनाना है ,
तन और मन के दुश्मनों को स्वविवेक से मार भगाना है पढ़ा-लिखा काबिल बना दो पंखों को फैलाना है,
दो-दो कुल को तारेगी वो स्वाभिमान हमारा है
गिरे ना आंसू के दो कण भी नव युग का निर्माण कराना है,
नभ के सीमाहीन पटल पर पुंज तारा बन जाना है
भ्रूण हत्या ना हो बेटियों को अब बचाना है,
उन्हें भी जीने का हक है उनको भी संसार देखने दे
वो लाड़ दुलार उन्हें भी दे मजबूर नहीं बताना है ,
✍️ सुनीता जौहरी
वाराणसी
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#साहित्य संगम संस्थान
#पश्चिम बंगाल इकाई
विषय बेटियां
दिनांक 27-10-2020
आंगन की महक तुमसे
खुशियों की चहक तुमसे
चेहरे की मुस्कान हो तुम
प्यार भरा अरमान हो तुम
सृष्टि का नूर हो तुम
बेहतरीन कोहिनूर हो तुम
माता पिता का अभिमान हो तुम
ममता का पैग़ाम हो तुम
तुम देवी का रूप हो
अंधेरे में हल्की सी धूप हो
बेटी तुम हमारा सम्मान हो
ईश्वर का बेहतरीन वरदान हो तुम
✍️ रजनी हरीश
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नमन मंच
साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल ईकाई
विषय- बेटियाँ
विधा- कविता
दिनाँक 27-10-2020
शीर्षक-बेटियाँ
जग में नहीं होंगी बेटियाँ,
कौन बसाता यह संसार।
करके बेटी का भ्रुण हत्या,
नहीं मिलेगी बेटी को बहार।।
माँग करते कभी दहेज का,
जैसे दानव हरकत करते।
पत्नी के बलि चढ़ा करके,
सर ऊँचा करके चलते।।
जो तुम मरोगे बेटियों को,
कहाँ मिलेगा तुमको वारिश?
प्रसव वेदना लालन -पालन,
कौन करेगा बच्चे का मालिश?
सौ-सौ सत्कर्म करने से,
बेटी मिलती अमूल्य धन।
बन कर लक्षमी वे आती है,
करो सम्मान धरा के जन।।
न करना हत्या बेटियों की,
बहुत ज्यादा पछताओगे।
देख कर दुर्दशा बेटियों की,
जीवन भर सुख नहीं पाओगे।।
पढ़ा लिखाकर देखो बेटी को,
वे आसमान को छू सकती है।
साइना, कल्पना बनकर वे,
चाँद, तारे को गिन सकती है।।
लक्षमी बाई बनकर उठो बेटियाँ,
अत्याचारों का संहार करो।
मन में प्रण करके दुष्टो का,
तलवार उठाकर वार करो।।
✍️ देबीदीन चन्द़वँशी
ग्राम- बेलगवाँ
तह0 पुष्पराजगढ़
जिला अनूपपुर
म0 प्र0
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नमन मंच
#साहित्यसंगम संस्थान पश्चिम बंगाल
दिनांक२७-१०-२०
#विषय-बेटियाँ
#विधा-स्वतंत्र
आन बान शान है मेरी बेटियाँ।
दुर्गा लक्ष्मी समान है मेरी बेटियाँ।।
क्यों मार रहे हो कोख में।
प्यार की मूरत को।
महकता घर सारा।
सुंदरता आँगन है मेरी बेटियाँ।
बेटो से है कम नहीं।
सभी क्षेत्र में आगे।
बन जाये जब काली।
भूत डर से भागे।
आँको नहीं कम इसे।
जहरीली नागन है मेरी बेटियाँ।
बिटिया जीवनदायिनी।
ममता का है रूप।
दुख दर्दे सब बाँटती।
नाना रूप स्वरूप।
पार्वती भवानी सो जान है बेटियाँ।
मात पिता की लाडली।
प्यार की मूरत है।
माँ अम्बे की सूरत।
लगती खूबसूरत है।
सुंदर रूप पावन है मेरी बेटियाँ।।
✍️ चन्द्र भूषण निर्भय
बेतिया पश्चिम चम्पारण
बिहार
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#साहित्य_संगम_संस्थान_पश्चिम_बंगाल_इकाई
दिनांक-27/10/2020
#विषय-बेटियां
विधा- स्वैछिक
सुनो बहनों तुम्हीं को अब,यहाँ कुछ कर दिखाना है
उठा हथियार हाथों में, दरिंदो को मिटाना है।
लुट रही आबरू है आज बेटी की जमाने में
बनोअब आत्मरक्षक खुद,तुम्हें भुजदंड उठाना है।
बने थे मूकदर्शक तब, लुटी जब देश की बेटी।
बचा पाया नहीं कोई, मिली थी आग पर लेटी।
बने गद्दार नेता हैं, छिपाते मेन मुद्दे को,
दबाते जुर्म ले रिश्वत , सुरक्षित है नहीं बेटी।
मशाले हाथ में लेके, धरा को पाक तुम कर दो।
मिले बहंसी दरिंदों तो, जलाकर राख तुम कर दो।
नहीं अब हार मानो तुम, मिटा दो जुर्म दुनियां से,
दिखे पथ भ्रष्ट नेता तो, मिटा कर खाक तुम कर दो।
✍️ अभिनव मिश्र"अदम्य
शाहजहांपुर, उत्तरप्रदेश
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सादर नमन मंच
#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#विषय- बेटियाँ
#विधा- दो मुक्तक
#दिनांक-27-10-2020
दिन-मंगलवार
मात्रा भार-15
1/
हमे बचाये, बेटियाँ दे रही आवाज़ है।
अब बेटियाँ नहीं किसी की मोहताज है।।
बेटियाँ प्रकृतिस्वरूपा बचाना होगा।
बेटियाँ तो सदा भारत की सरताज है।।
मात्रा भार-16
2/
अब भेदभाव मिटाये, बेटियों को पढ़ाये ।
बेटियों का मान बढ़ाये, देश को आगे बढाये ।।
पुरानें कुसंसकारो को हमें मिटाना होगा ।
देश की शान बढ़ाये, इनको नहीं मिटाये।।
✍️ गौतम सिहं "अनजान "
पश्चिम मिदनापुर
पश्चिम बंगाल
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#मंच को सादर नमन
#साहित्य_संगम_संस्थान_पश्चिम_बंगाल_इकाई
#विषय_बेटियाँ
#दिन-मंगलवार
#दिनांक-27/10/2020
#विधा- कविता
बेटियां महान हैं,
श्रृष्टि की वरदान हैं।
सदा फूल सी महक
तुम हमारी शान हैं।।
मुख पे मुस्कान है,
हौसलों में जान है ।
मुश्किलें अथाह मगर,
ना कभी परेशान हैं।
कष्ट जो भी हो उन्हें ,
मुस्कुरा के वो सहें।
ना दर्द को करे बयां ,
किसीसे ना वो कहें ।
कृतियां महान हैं,
धरा पर वरदान हैं।
दो घरों की लाज और,
बेटियां सम्मान हैं।।
✍️ बेलीराम कनस्वाल
घनसाली,टिहरी गढ़वाल,उतराखण्ड।
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सादर नमन मंच
#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
#विषय- बेटियाँ
#विधा- कविता
#दिनांक-27-10-2020
# दिन- मंगलवार
ममता आँखों में दिखती है,
हँसती है तो खुशियाँ भरती है,
पायल जब छमछम करती है,
रौनक पूरे घर की बनती है।
दुर्गा स्वरूपणी बिटिया रानी,
जिस घर मे भी रहती है,
वो घर मंदिर बन जाता है,
सुख समृद्धि वहाँ रहती है।
हर बेटी में दुर्गा जैसे ही,
शक्ति भरने का करो प्रयास,
प्रेम,सम्मानऔर सुरक्षा दे कर,
छूने दो उसको हर आकाश।
बेटी मोक्ष का द्वार खोलती,
कन्या दान महादान कहलाता,
अपने दिल के टुकड़े को देना,
बाबुल के लिए आसान न होता।
कभी सरस्वती, लक्ष्मी बनती,
अन्नपूर्णा बन घर भरती,
बेटियाँ तो दो घरों को तारे,
सारी शृष्टि को भी वही सँवारे।
✍️ नीलम द्विवेदी
रायपुर, छत्तीसगढ़
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नमन मंच
#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल
दिनाँक: 27.10.2020
दिन: मंगलवार
विषय: बेटियाँ
विधा: स्वतंत्र
*बेटी*
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बेटी घर की शान है,
बेटी घर की मान।
मर्यादा में है बँधी,
दो कुल की पहचान।।
बेटी से होते यहाँ,
रौशन घर परिवार ।
किलकारी घर गूंजती,
खुशियां मिले अपार ।।
राखी का त्यौहार है,
बेटी तुम बिन सून ।
घर की बगिया की महक,
बेटी पुण्य प्रसून ।।
घर की लक्ष्मी बेटियां,
करिए मत अपमान।
रुन-झुन वह करती फिरे,
मिश्री घोले कान ।।
बेटी तुमने कोख में,
आज दिया जब मार।
बहू मिलेगी कल कहां,
तुमको नहीं विचार।।
गफलत को मत पालिए,
करिए तनिक विचार।
बेटी से भी मिल रही,
मोक्ष और उद्धार ।।
✍️ ✒© *विनय कुमार बुद्ध,*
न्यू बंगाईगांव (असम)
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नमन मंच
#साहित्य_संगम_संस्थान
##पश्चिम_बंगाल_इकाई
#दिनांक_२७_१०_२०२०
#दिन_मंगलवार
#बिषय_बेटियां
#विधा_काव्य
"बेटियां"
सुन सुन कर अपनी तारीफ के कसीदे,खुश हो सकती हैं बेटियां।
राजनीतिज्ञों द्वारा बेटियों के प्रति होने वाली नित नई
घोषणाओं से खुश हो सकती हैं बेटियां।
समाज के स्वार्थी मुखौटों वाले कर्णधारों के दिखावटीपन से खुश हो
सकती हैं बेटियां।
पर खुश नसीब नहीं।
सदा सदा से खिलौना समझी जाने वाली बेटियां।
गऊ जैसी सीधी किसी भी खूंटे से बांध दी जाने वाली बेटियां।
पति को भगवान मान समर्पण की प्रतिमूर्ति दुख, यातना, तिरस्कार में जीने
वाली बेटियां।
राह चलते फब्तियों का शिकार,अपने दामन को बचा पाने में लाचार बेटियां।
अपने सगे संबंधियों की कूटनीति का शिकार बेटियां।
माता के गर्भ में मौत की
नींद सुलाई जाने वाली बेटियां।
समाचार पत्र और दूर दर्शन
की नित नई खबर बनने वाली बेटियां।
आखिर कब तक अत्याचार सहेंगी,दहेज की आग में जलेंगी, पीड़ा सहेंगी।
जब-तक सास को बेटी में बहू न दिखाई दे।एक पति को पत्नी के शिवाय हर नारी मां बहन बेटी न दिखाई दे।
समाज सुधारकों, राजनीतिज्ञों को अपना
कर्त्तव्य निभाने में स्वार्थ दिखाई दे । बेटियां खुशहाल नहीं हो सकतीं।
हम अपनी सोच में सुधार कर हर बेटी को अपनी बेटी मानें उनकी रक्षा में अपना बलिदान देने से पीछे न रहें तभी खुशहाल रह सकेंगी बेटियां।
तभी खुशहाल रह सकेंगी।
✍️ विजय शंकर, कानपुर।
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#साहित्य संगम संस्थान
विषय - बेटियाँ
विधा - कविता
दिनाँक - 27/10/2020
तुम कलियाँ ही तोड़ डालोगे तो पुष्प कैसे खिलाओगे।
बगियाँ हो जाएगी सूनी,कैसे फूलों से गुलजार सजाओगे।
जिस आँगन में बेटी खेले वो घर स्वर्ग से सुंदर है,
जिस घर में बेटी जन्मी वो एक सुंदर सा मंदिर है।
क्यों करते हो भ्रूण हत्या, बेटी का क्या कसूर है,
बेटा बेटी में फर्क करना, दुनियाँ का कैसा दस्तूर है।
बेटी घर की लक्ष्मी होती गंगा सी पावन होती बेटी।
दो कुलों की लाज रखती, घर की शोभा होती बेटी।
नन्हें-नन्हें पैर रखे जमीं पर घर खुशियों से महकाओगे,
बड़े होकर नाम रौशन करेगी तब गर्व से शीश उठाओगे
बेटियाँ होती घर की रौनक, बेटी होती घर का श्रंगार,
जिस घर बेटी न हो अगर वो घर लगे अधूरा परिवार।
कलियों को विकसित होने दो, घर पुष्पों से महकाने दो,
दो कुलों का नाम रौशन करे बेटी इसे धरा पर आने दो।
क्यों लगती है बोझ बेटी उसका भी तो अपना भाग्य है,
माता पिता कन्या दान करते उनका अपना सौभाग्य है।
घर खर्चे में हाथ बटाती अब बेटियाँ भी करती जॉब,
चंद खुशी में खुश हो जाती नही दिखाती अपना रॉब।
बेटी से रहती घर चहल-पहल वो पल कैसे भुलाओगे,
दुख दर्द में जरूरत पड़े बेटी की अपने करीब पाओगे।
घर की खुशहाली होती है बेटी ये सबको समझाओगे,
बेटियाँ ही मिट जायेंगी तो फिर बहू कहाँ से लाओगे।
✍️ सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
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नमन मंच 🙏🙏🙏
दिनांक- 27-10-2020
#विषय - बेटियां
#विधा - कविता
#रचना शीर्षक - बेटी की अभिलाषा
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बेटी की अभिलाषा
बेटी की अभिलाषा है कि, मैं भी जग में आ पाऊं।
अपनी प्यारी मां के हाथों, प्यारी सी थपकी पाऊं।
मां मुझको जग में आने दो, पापा से मैं मिल पाऊं।
पापा की बाहों में खेलूं, प्यार भी उनका मैं पाऊं।
भाई से कम नहीं हूं मम्मी, साबित मैं इसको कर पाऊं।
जग में आने दो प्यारी मम्मी, आपकी सेवा कर पाऊं।
बेटी की अभिलाषा है, मां बाप की सेवा कर पाऊं।
भाई जैसा पढ़ लिखकर मैं, सीएम, पीएम बन पाऊं।
भारत के प्यारे संविधान से, शिक्षित मैं भी हो जाऊं।
अपने प्यारे देश की सेवा, मैं भी आकर कर पाऊं।
बेटा बेटी को किए बराबर, भीम का दर्शन कर पाऊं।
जग में आने दो प्यारे पापा, आपकी सेवा कर पाऊं।
मम्मी पापा जन्म मुझे दो, आपकी बेटी हो जाऊं।
जग में आकर भाई की, प्यारी बहना बन पाऊं।
एक नहीं मैं दो-दो घर का, ध्यान सदा मैं रख पाऊं।
मायका और ससुराल के घर को, बेटी बनकर महकाऊं।
✍️ - बुद्धि सागर गौतम
जन्म तिथि: 10/01/1988
कार्य: शिक्षक।
पता: नौसढ़, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत -273016.
ई-मेल: budhigautam@gmail.com
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#साहित्य संगम संस्थान पश्चिम बंगाल इकाई
विषय- बेटियां
*बेटियाँ--(समानिका छन्द)*
बेटियां सुखी रहें।
ना कभी दुखी रहें।।
वार मैं जहान दूँ।
मैं धरा विहान दूँ।।
ये पढ़ें लिखें सदा।
हौसला भरें सदा।।
उच्चता मिले सदा।
पुष्प सी खिले सदा।।
लाड़ली बड़ी लगें।
माँ सुता सभी लगें।।
जिंदगी निखारती।
गेह दो सँवारती।।
बोझ ना लगे सुता।
भाग्य से मिले सुता।।
मातु की हँसी सुता।
तात की खुशी सुता।।
देव का प्रसाद हैं।
मेटती विषाद हैं।।
नेह औ लगाव दें।
ना कभी अभाव दें।।
✍️ *गुँजन शुक्ला*
औरैया- उत्तर प्रदेश
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सादर नमन आदरणीय मंच
#साहित्य_संगम_संस्थान_पश्चिम_बंगाल_इकाई
विषय प्रवर्तन
दिनाँक -27/10/2020
दिन -मंगलवार
विषय -बेटियाँ
विधा - कविता
नसीबों की साखों पे खिलती है बेटियाँ।
उँचा हो मुकद्दर तो मिलती है बेटियाँ ।।
जिन्दगी के छन्दों का अलंकार है बेटियाँ ।
कविता के पन्नों का संस्कार है बेटियाँ।।
वत्सल के श्रृंगार का रस है बेटियाँ, ।
कल के सँसार का यश है बेटियाँ l।
देश की आन _बान_ शान है बेटियाँ।
बेटी को बोझ न समझे ,
घर की लक्ष्मी होती हैं बेटियाँ।।
माँ_बाप के दर्द को समझती बेटियाँ।।
घर को रौशन करती है बेटियाँ।
बेटा भाग्य से जन्म लेता है ,
बेटी सौभाग्य से प्राप्त होती हैं।।
यदि इनके साथ कोई करता है,
अपनी सीमा रेखा पार।।
उसको ऐसा सबक सिखाओ कि,
फिर ना करे वो ऐसा व्यवहार।।
समाज के ऐसे दानवों को ये,
समझाना होगा कि।।
सृष्टि की जननी और सृष्टि की
संहार हैं बेटियाँ।।
✍️ -आभा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश
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77. आ.गुँजन शुक्ला
78. आ.आभा सिंह